सत्ता के इन सौदागरों को
किसानों का दुख दर्द नहीं
सिर्फ सियासत की चाल नज़र आतीहै
ये इन्सान को दो बंटे तीन
हिस्सों में बांटते हैं
अपनी खोटी नीयत को
कारपोरेटी टकसाल में ढाल
विशेष उपलब्धि का स्टंट रचते हुए
जनहितों को राजनीतिक अंदाज में
चाटते हैं।
इनका न कोई धर्म है,न इमान
देखो अपने हक के वास्ते
सियासी भेड़ियों से जूझ रहा है
देश का अन्नदाता…
किसान।
अगर तुम चुप रहकर जुल्म सहते रहे
न हुए सचेत तो वह दिन दूर नहीं
जब तुम्हारे हक के साथ छीन लेंगे
तुम्हारे खेत खलिहान
तुमइतनीआसानी से नहीं समझसकते
इनकी कूट सियासी चाल
संसद में भुकुरा सा बैठा
तुम्हारी आवाज़ दबाने के लिए
कह रहा है,भाइयों मेरे साथ आओ उनकी नहीं,मेरी सुनो
मुझ पर करो यकीन
ये भय संशय अविश्वास का नहीं है
सवाल
हम एक शरीर, दो हैं प्राण
मत हो किसी आशंका से भयभीत
जय जवान जय किसान।
डा.राहुल, नयी दिल्ली