Latest Updates

डिज़ीज़ फ़्री इँडिया

कविता मल्होत्रा

शक्ति, पावर, सत्ता का, आजकल हर तरफ बोलबाला है

एक दूजे से आगे निकलने की होड़, हर मन का निवाला है

✍️

ये पश्चिमी सभ्यता के गहन प्रभाव का ही परिणाम है, कि

आजकल समाज में विशिष्ट दिवस मनाने का प्रचलन है, जो तथाकथित आधुनिकता की देन है।कभी मातृ दिवस कभी पितृ दिवस तो कभी पर्यावरण दिवस।इसी प्रकार के अनगिनत दिन हैं जो कोई न कोई विशिष्टताएँ लिए हुए हैं, जिन्हें मनाने की धुन में, अँधानुकरण करती सभ्यता, आज वास्तविक उत्सवों के आयोजन का अर्थ ही खो बैठी है।

मज़े की बात ये है कि हर दिन को,एक विशिष्ट रिश्ते या विषय के नाम कर के,ये सभ्य समाज अपने कर्तव्य की इति श्री तो समझ लेता है, किंतु बिना बुनियाद के नातों और विषयों की हर इमारत आज कच्ची हो चुकी है। एैसी क्षणभँगुर सत्ता का अभिमान लिए आधुनिक सभ्यता, अपने समक्ष किसी को कुछ समझती ही नहीं,बल्कि अपने मन में एक दूसरे से ईर्ष्या द्वेष लिए ,दूसरों को पछाड़ने हेतु प्रतिस्पर्धात्मकता की भावना रख कर, अपना स्वार्थ साधने के लिए,पीठ पीछे छुरी भौंकने से भी नहीं चूकती।

एैसा नहीं है कि सँसार का प्रत्येक प्राणी ही नश्वरता की इस चकाचौंध का दीवाना है। आज भी कुछ लोग एैसे हैं जो निस्वार्थ भाव से जन कल्याण की ओर अग्रसर हैं।एैसे ही लोगों के दम पर आज भी ये सँसार टिका है।

एक दूसरे पर अभियोग लगाता हुए ये शिक्षित समाज आज योग दिवस तो मनाता है लेकिन अपनी नैतिकता को योग का अर्थ नहीं दे पाया।

मन से मन को नही जाना जा सकता.जिस तरह आँखों से आँखों को नहीं देखा जा सकता.मन को वही जानता है या जान सकता है जो मन के पार हो.अन्यथा मन कभी भी स्वयं की पोल नही खोलता।मन जानने की चीज़ नही है. मन समझने की चीज़ है।

दरअसल हमारा मन ही रोग है, और अपने मन की कामनाओं से मुक्ति पाना ही रोगमुक्त समाज की स्थापना का अहम सूत्र है।

✍️

योग ही है हर रोग से मुक्ति का सीधा सरल उपाय

तामसिक मन-बुद्धि शुद्धि की हर राह योग दिखलाए

✍️

आज डॉक्टर्स डे है, समाज को अपनी निस्वार्थ सेवा से निरोगी काया का वरदान देते, समूचे चिकित्सक वर्ग को इस विशिष्ट दिवस की बधाई व हार्दिक शुभकामनाएँ दे कर ही अपना दायित्व ख़त्म नहीं हो जाता, बल्कि वैश्विक उत्थान की एक सोच ज़हन में कुलबुलाती है, कि यदि अपने समाज को रोगमुक्त बनाना है, तो हमें चिकित्सकों की सँख्या में वृद्धि न कर के, तमाम शारीरिक व मानसिक रोगों की सँख्या को कम करने की प्रवृत्ति को बढ़ाना होगा।

एैसा तभी सँभव होगा जब हमारे आसपास का समूचा वातावरण स्वच्छ होगा। जिस के लिए हमारे मन की स्वच्छता सबसे अहम है।

हमारा मन जो अपना स्वार्थ साधने के लिए, किसी न किसी सत्ता के,स्वामित्व के,नशे का आदी हो चुका है, वास्तव में प्रत्येक रोग की जड़ है। यदि हम अपनी ही इस बीमार मानसिकता को तिलाँजलि देने का प्रण कर लें तो वो दिन दूर नहीं होगा, जब ये समूचा विश्व रोगमुक्त हो कर अमन का परचम लहराएगा।

✍️

अपने मन को साध कर, साधना को अर्थ दे पाएँ

रूह से रूह के योग का,हर पल आयोजन कर पाएँ

अपनी मैं के रोग को,अहम के विष से पोषित न करें

सबमें रब बसता है,किसी हरि जन को शोषित न करें

रहे वैश्विक बँधुत्व का, हर रूह पर ही निस्वार्थ साया

वाँछित वैश्विक स्तर पर रहे,स्वस्थता व निरोगी काया

अपने दीपक आप बनें, हर ज़हन अपना चिकित्सक हो

स्वच्छता मन की खोज,हर रूह कल्याण को उत्सुक हो

केवल निस्वार्थ प्रेम,डिज़ीज़ फ़्री इँडिया की बुनियाद रहे

परस्पर भाईचारा मज़हब हो, यूँ समूचा वतन आबाद रहे

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *