गीत
दिल्ली भी अब आम हो गयी।
क्यों इतनी! बदनाम हो गयी।
बार बार के दंगें खाकर
लगता है बेकाम हो गयी।
दिल्ली।।।।।।
युगों से सहती आयी दिल्ली
धरना और धधकती आगें।
फुफूकारते रहते हरदम।
छिपे बिलों के विषधर नागें।
निकला सूरज देख रहा है।
सामने कैसे?सायं हो गयी।
दिल्ली।।।।।।।
किसको पूछूं किससे पूछूं
कबसे कितने मार सहे।
मुगलों और अंग्रेजों ने ही।
सीने पर कितने वार गहे।
तुमको तो समझी थी अपनी।
फिर भी दुविधा नाम हो गयी।
दिल्ली।।।।।।
जो था पानी मेरे नाम की।
उसको भी क्यों पी डाले तुम।
आंखें बंद, बंद हैं सबके।
शर्म हया भी पी डाले तुम।
कौन बचाने अब आयेगा।
आंचल ही बेदाम हो गयी
दिल्ली भी अब आम हो गयी
क्यों इतनी बदनाम हो गयी।
भीम प्रजापति