करुना वशिष्ट , मेलबोर्न ऑस्ट्रेलिया
अभी थोड़े दिन पहले ही की थी दीवाली की सफाई
सोफे के पीछे से , अलमारी के पीछे से,कुछ बहुत ही प्यारी चीज़े नजर आईं,
जो खिलौना लगाए फिरती थी गले से,अब मेरी बेटी उसे भूलती नजर आईं
पुरानी एल्बम के बीच में एक धुंदली सी तस्वीर भी नजर आईं
देख उस तस्वीर को ,अपने बचपन की बहुत याद आईं
जहां खुली छत के नीचे होती थी अपनी चारपाई
चुटकुले के सिलसिले और शैतानियों कि यादें एक बार फिर सिमट आईं
तब दोस्तों, पहले की दीवाली और अब की दीवाली में एक बात समझ मे आई
पहले की हर छोटी सी बात पर हसी आईं
और आज थोड़ी सी कमी भी लगती है जग हसाई
पहले थोड़े में जो मिलता था ,पूरा नहीं कर पाती है आज 3 गुणा कमाई
जहां थी किताबें हाथों में वहा करची नजर आईं
बेपरवाह सी जिंदगी , अब जिम्मेदारी उठाती नजर आईं
दोस्त जो बेधड़क आते थे, अब फोन पर उनकी सहमी सी आवाज़ आई
लड्डू खाने वाली अब बनाती नजर आईं
तभी एक आवाज़ हुई,और मैं बचपन से आज में लौट आईं
चलो दोस्तों , अगले साल फिर कहेंगे फिर दीवाली आईं
क्यूंकि यही रीत सदा चली आईं ।।