आज बैठी हूँ मैं उदास
लिखने जा रही हूँ कुछ खास
इस महामारी के चलते लोग नहीं हैं आसपास
किसी ने नहीं सोचा था कि कोर्इ समय ऐसा आयेगा,
इन्सान इन्सान से मिलने के बाद पछितायेगा।
कैसे हैं आज के समय के फसाने,
लोग ही लोगों को लगे हैं डराने।
क्या यह हमारी गलती है जिसका खामियाजा गरीब भुगत रहे,
बिना बात के ही लोग क्यों सड़क पर मर रहे।
ये कोर्इ आपदा है या कोर्इ और है मसला,
क्या आज पृथ्वी हमसे ले रही है कोर्इ बदला।
पर इस आपदा से इस बात का पता चल गया,
मौत को इतनी आसपास देख हर कोर्इ डर गया।
जो लोग कहते थे कि हमें कुछ नहीं होगा,
उन्हें उनकी गलतियों ने ही दे दिया है धोखा।
आज पृथ्वी खुली हवा में सांस ले रही है,
घुट रही थी इतने दिनों से आज चुपके से कुछ कह रही है।
यह महामारी है या किसी चेतावनी का संकेत,
अभी भी समय है जनमानस हो जाओ थोड़ा सचेत।
राखी भारद्वाज
What a poem… Superb❤
धन्यवाद जी
Nice
धन्यवाद जी
The best poem written by best poet
thanks
Lovely poem
धन्यवाद जी