प्रेम अगर पाप है तो पुण्य किसका नाम है
प्रेम ही मीरा और प्रेम ही घनश्याम है
विश्वास नहीं हो तो मन के मंदिर में देखो
प्रेम ही सीता और प्रेम ही राम है
मगर कुछ पापियों के पाप से
आज प्रेम भी बदनाम है
सदियों बीत गई प्रेम की परिभाषा समझने में
जिंदगी गुजर गईं प्रेम को पाने में
लेकिन समझ ना आया किसी जमाने में
प्रेम की जब नईया डूबी
खेबन को जब दुनिया की
दुनिया में नादान समाया
वो भी अनजान प्रेम से था
नफरत में थी जिंदगी गुजरी
प्रेम की प्यासी दुनिया सारे
फिर भी सब तकदीर निहारे
सब कोसे भगवान को
जोर से, हाथ जोड़कर मंदिर में पुकारे
हाय, तूने क्या तकदीर बनाई
प्रेम की तूने चिंता जलाई
भगवान भी सून के नीर बहाई
हाय, मैंने क्या इंसान बनाई
जो उसी के पास अनमोल धन है
उसी के लिए सर पटक के पुकार लगाऐ
प्रेम तूम्हारे अंदर है
नाम – डॉली अनूपिया
पूर्णिया बिहार
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