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मेरी भाषा, मेरा अभिमान

सुमित को नौकरी मिल गई थी। उसकी खुशी का ठिकाना नहीं था। आज सुबह ही उसे फोन के माध्यम से सूचना मिली थी। वह एक माह पूर्व इस नौकरी  के साक्षात्कार के लिए गया था, अपने दोस्त अमित के साथ। साक्षात्कार की उसने बहुत तैयारी की थी। अपने विषय की पढ़ाई करने के साथ साथ कम्पनी के बारे में भी पूरी जानकारी प्राप्त की थी।

साक्षात्कार देने के बाद उसका मनोबल कुछ टूट सा गया था। कारण एक ही था भाषा की समस्या। साक्षात्कार में उससे पूछे गए अधिकतर प्रश्न अंग्रेजी में ही थे। हिंदी भाषी प्रदेश से होने के कारण वह अंग्रेजी बोलने में हिचकिचाता था। प्रश्नों के उत्तर आते हुए भी वह अंग्रेजी में उत्तर नहीं दे पा रहा था।

उसने साक्षात्कार समिति से आज्ञा लेकर सभी प्रश्नों के हिंदी में उत्तर दिए। उनका आखिरी प्रश्न भी यही था कि यदि कोई ग्राहक हिंदी भाषा नहीं समझता है तब आप उसे कंपनी के विषय में कैसे जानकारी दोगे ? सुमित ने ईमानदारी से उत्तर दिया था। “श्रीमानजी मैं आज ही से अंग्रेजी भाषा बोलने का अभ्यास प्रारम्भ कर दूंगा। जब तक कंपनी मुझे नियुक्ति देगी, मैं अंग्रजी भाषा निपुणता से बोलना सीख जाऊंगा।” और उसने किया भी वैसा ही। आज सुबह जब उसके चयनित होने की सूचना अायी तो उसके पैर जमीन पर नहीं पड़ रहे थे। वह तुरंत अपने दोस्त अमित के घर की ओर चल दिया। अमित ने भी उसी कंपनी में साक्षात्कार दिया था। उसका अंग्रेजी ज्ञान सुमित से अधिक ही था। वह अंग्रेजी बोल भी पाता था। उसे उम्मीद थी कि अमित को भी नौकरी के लिए चुन लिया गया होगा। यही पता करने सुमित उसके घर जा रहा था। अमित घर पर ही था लेकिन उसका चयन नहीं हो पाया था। सुमित को दुख हुआ। लेकिन अमित अपने चयनित न होने का कारण जानता था। उसने बताया कि उसने सभी प्रश्नों के उत्तर अंग्रेजी में देने की कोशिश की परंतु अंग्रेजी भाषा पर पूर्ण अधिकार न होने के कारण साक्षात्कार कर्ता को अपना उत्तर समझा नहीं पाया। इसके उलट तुमने अपनी भाषा में सही उत्तर देकर उन्हें प्रभावित कर लिया। उन्हें विश्वास हो गया कि तुम अपनी मेहनत से अंग्रेजी भाषा बोलना भी सीख जाओगे। अमित ने कहा कि वह अब जान चुका है कि अपनी भाषा पर गर्व करके ही हम आगे बढ़ सकते हैं। सुमित उसकी बात से पूरी तरह सहमत था।

अर्चना त्यागी

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