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मैं बदलूँ तो बदले समाज

आज मनुष्य का जीवन हर प्रकार से त्रस्त और असुरक्षित है।पेट भरने को भोजन नहीं है,कितनीही आशंकाओं के बीच जी रहे हैं और हर ओर सेमनुष्य का शोषण औरउत्पीड़न हो रहा है।ऐसीपरिस्थिति में आदमी के पास केवल एक ही विकल्प बचा है कि वह व्यवस्था को बदल डाले।
आज लगभग पूरा विश्व ही कोरोना महामारी की चपेट में है।डेढ़ करोड़  से ऊपर लोग संक्रमित है, छह लाख से ऊपर काल के गाल में समा गये। भारत में यह संख्यापचास साठ हज़ार की गति से रोज़ बढ़ रही  है।यही हाल रहा तो दिसम्बर आते आते यहसंख्या 90लाख को छू  जायेगी।ऐसे हालात में प्रशासन व जनता में जितनी सजगता होनी चाहिए वो नहीं हैं।लम्बेसमय तक हमें यूँ ही कोरोना के साथ रहना जीना सीखना है औरऐसे ही हालात में आगेबढ़ते ही रहना है, कोईउपाय भी तो नहीं है अभीपर एक बात बहुत ही विचारणीय व आश्चर्य सेभरपूर है कि अभी भी गरकुछ बदस्तूर चल रहा हैतो वो है भृष्टाचार, बढ़तेअपराध,राजनीतिक उठापटक, बढ़ती महंगाई व ज़माखोरी।सत्ताधारी दल के लोग भी कोरोना से बचाव के नियमों की हीअवहेलना करते रहेंगे तोजनता को कैसे रोक पायेंगे। कानून बनाने वालेही तो कानून तोड़ते हैं ओर बच निकलते हैं।
“दिल तो कहता है,बदलडालूँ समाज को,पर किसे बदलूँ, जब मैं खुद ही समाज हूँ।” शुरुआत तो स्वयं से ही करनी पड़ेगी,परन्तु सदियों से चली आरही विडम्बना यही है किमैं का अर्थ आमजन  ही है,सत्ता मिलते ही शासकनिरंकुश राजा बन  जाता है और जनता अर्थात मैंजो,जैसा,माहौल उसी मेंही स्वयं को,मन मसोस कर,व्यवस्थित करने मेंजुटा रहता हूँ,क्योंकि यही तो मेरीअनवरत नियति है,यही मेरा प्रारब्ध!
शासक वर्ग को सामान्य जन से कोई सहानुभूति नहीं है उससे आत्मीयता की आशा करना वैसा ही है जैसे कोई विषेले सर्पों के बिल में अमृत की ही आशा करे।आम आदमी के जीवन पथ में नाना प्रकार के कांटे बिखेर दिए गए हैं,उसकी आंखों में धूल झोंकने का ही प्रयत्न किया जा रहा है।उसके सुख स्वपन अधूरे रह कर उसे और भी डसरहे हैं।
आज की न्याय व्यवस्था अत्यन्त हृदय हीन औरयांत्रिक रूप से ग्रस्त है।न्याय सबूत मांगता हैऔर सबूत को भयभीत कर दिया जाता है गर न माने तो दुनिया से ही उठा दिया जाता है, ऐसे मेंवहां दया की आशा करनावैसा ही है जैसे कोई निरीह बकरी कसाई घर में कसाई से दया की भीख मांगे।आज नहीं तो कल उसके गले पर छुरी चलनी है।आज न्याय की आशा करना आत्म प्रवंचना है।आज साधन सम्पन्न लोगों को ही न्यायमिल रहा है।जो दीन हीन हैं,उनके पास अपने पक्ष को प्रमाणित करने के लिए गवाह खरीदने की क्षमता नहीं है,उनको कारागार मिलता है।इसअन्याय पूर्ण व्यवस्था केविरूद्ध आवाज़ उठाना भी जुर्म है।सभी प्रश्नों और आक्षेपों का मुंह बन्दकर दिया जाता है।इसव्यवस्था में परिवर्तन लाने के अलावा कोई चारा नहींहै।विकास दुबे को खाकी व खादी का पूरा सरंक्षण मिला,जब तक इस तरह गठजोड़ का तोड़ नहीं होगा,प्रशासन की वाणीव कार्यप्रणाली में एकरूपता व शुचिता नहींहोगी तो परिवर्तन को तोढूंढते ही रह जायेंगे।
देश के सामान्य जन बड़े सरल स्वभाव के हैं, सत्तावर्ग व नेता गण अक्सरइनसे झूठे वायदे करके इनको बहलाते रहते हैं।जिस प्रकार किसी बांझ स्त्री को खिलौना देख कर सन्तान होने की इच्छा पीड़ित करने लगती है, उसी प्रकार ये झूठे वायदे भी सुख के लिए तरसतेबिलखते जन गण को क्षण भर के लिए ही सही, आशान्वित करके उसकी बांझ इच्छाओं को और व्यथित कर जाते हैं।उनकी सुख की अभिलाषा निराशा केमरुस्थल में भटकती रहजाती है,उनकी आशाओं को निरन्तर छला जा रहा है,उनके विश्वास भटकते रहने को विवश हैं। यहीविवशता जब विद्रोह का रूप ले लेती है,क्रांति का उद्भव होता है,वंचित के आंसू तेज़ाब बन कर एकअग्नि का सैलाब ले आते हैं,जिसमें परिवर्तन का, नए परिवर्तन का जन्म होता है,जो नई आशा वनए नए सपनों को नयाआकाश देता है।आज आम आदमी का जीवन हर प्रकार के शोषण व उत्पीड़न से समझौते करते ही बीत रहा है। एक समझौते के बाद दूसरा समझौता।इनसमझौतों की छलना मेंउसने जीवन के क्षण औरपहर जागते जागते बिताए हैं,उसकी हालतउस बालक जैसी है जो एक के बाद दूसरे जुगनू के पीछे दौड़ता है पर उसके हाथ कुछ नहीं आता।आज मनुष्य का आने वाला कल भी निराशा की चोटों से घायल है और वर्तमान कीपीड़ा से त्रस्त है। 
इन हालातों से बाहर आने के लिए स्वयं में विश्वास जगाना होगा,हर हाल मेंस्वाभिमान को सर्वोपरिरख स्वयं को यह एहसासकराना है-“बांधे जाते इंसान कभी,तूफान न बांधे जाते है, काया जरूर बांधी जाती,बांधे न इरादे जाते हैं”और इन इरादों को मूर्त रूप देती है कलम। कलम की धार तलवार से भी ज्यादा पैनी होती है।जन जागृति की हुंकार हीपरिवर्तन लाएगी।जब समाज में न्याय, सत्य वस्वतंत्रता की शक्तियां क्षीण हो जाती हैं,  शक्तिहीन हो जाती हैं,तबलेखनी,सशक्त लेखनी चाहे प्रिंट,टी वी ,सोशल मीडिया के विभिन्न रूपोंमें हो, मनुष्य को आमूलचूल परिवर्तन का मार्ग दिखा सकती है। क्रांति का नव संदेश दे सकती है,जिस प्रकार पतझड़के बाद बसंत का आगमन होता है,उसी प्रकार ओजस्वी,प्रेरणा सेओतप्रोत सन्देश,अनमोल वचन,प्रेरक वीडियो,सार गर्भित,दशा व दिशा बदलदेने वाले शिक्षाप्रद लेख, गीत,कहानी, कविताएं मानव के सुखमय जीवन में बहार ले आते हैं और उल्लास का वातावरण जोश व उमंग से सराबोर हो जाता है,आशा,विश्वास की तरंगे हिलोरें लेती हैं,एक नए नवेले, नूतनआकाश का सृजन ही नज़राना बन कर सबकीनज़रों का तारा बन जाता है।

राजकुमार अरोड़ा गाइडसेक्टर2 बहादुरगढ़(हरि०)मो०9034365672

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