कभी एक-सा नहीं होता
कभी हमारा
तो कभी तुम्हारा नहीं होता
किसी की ख्वाहिश है
ना अधूरी होती
व्यक्ति खुद से ही खुद
ना हारा होता
जमीन पर होते किसके
कदम भला
मुमकिन हर किसी को
छूना तारा होता
ना होती अनुशासन में
यह दुनिया
और ना ही नदी में
किनारा होता
तेरे हाथ की कठपुतली है हम
कहां यह समंदर
खारा होता
हारना कहां आता
फिर किसी को
नमिता खुदा यह
जमाना सारा होता
श्रीमती नमिता सिंह जाट