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विश्व रेडियो दिवस पर विशेष

यशपाल सिंह

रेडियो दिवस के इस अवसर पर जब मैं पिछले 50-55 साल का रेडियो का इतिहास याद करता हूं तो बचपन से लेकर आज तक रेडियो के कई दौर याद आते हैं । गांव की चौपाल में रखा एक बड़ा सा रेडियो, हाथ हाथ में घूमता ट्रांजिस्टर, विविध भारती और बिनाका गीतमाला, अमीन सयानी, जसदेव सिंह, देवकी नंदन पांडेय की दनदनाती आवाज ‘ये आकाशवाणी है’। गीत, संगीत खेल या समाचार सब जगह रेडियो का दबदबा था। फिर उसके बाद गीत संगीत पर  कैसेट प्लेयर छा गया, तो बाकी सब पर टीवी । ऐसा लगा कि रेडियो जैसे लुप्त ही हो जाएगा। लेकिन रेडियो पुनर्स्थापित हुआ । और न सिर्फ पुनर्स्थापित हुआ, बल्कि एफ एम चैनल्स ने रेडियो के साम्राज्य को दूर-दूर तक फैला दिया और रेडियो ने यह साबित कर दिया कि जो समय के साथ बदलते हैं उनका समय कभी भी खत्म नहीं होता। आज रेडियो दिवस के अवसर पर मैं उन सभी लोगों अभिवादन करता हूं जिनकी इस बदलाव में महत्वपूर्ण भूमिका रही।

मैंने इसी विषय पर और इसी पृष्ठभूमि को सामने रखकर,  कविता के रूप में अपनी बात रखी है, जो इस तरह है।

विश्व रेडियो दिवस पर, आते वो दिन याद

हो जाती थी गांव की, चौपालें आबाद

बचपन के दिन गांव के, सीधे-साधे नेक

और था पूरे गांव में, सिर्फ रेडियो एक

सन पैंसठ था छिड़ी थी, हिंद पाक में जंग

था सबके ऊपर मुखर, राष्ट्र प्रेम का रंग

कितने हुए शहीद और, किसने तोड़ा टैंक

चर्चा में थे गांव की, सेनाओं के रैंक

होता शाम दोपहर को, जब खबरों का वक्त

मेले सा माहौल था, भर जाते थे तख्त

जैसे जैसे हम बढ़े, कुछ यौवन की ओर

ट्रांजिस्टर करने लगे, गली गली में शोर

सबसे चर्चित उन दिनों, स्टेशन सीलोन

गीतों के पायदान पर, कहां खड़ा है कौन

हॉकी हो या हो क्रिकेट, टेनिस या फुटबॉल

बतलाता था रेडियो, आंखों देखा हाल

कैसेट प्लेयर का नया, फिर आया एक दौर

गीत, ग़ज़ल चुनकर सुनो, चुनकर लता, किशोर

और टीवी को मिल गया, घर-घर कोना खास

लगा रेडियो हो गया, बस कल का इतिहास

लेकिन जो खुद बदलते, बदलावों के साथ

वक्त और हालात से, कभी न खाते मात

एफ एम चैनल आ गए, बदल गया सब सीन

कारों में संगीत से, समा हुआ रंगीन

पुनः रेडियो हो गया, निज गौरव को प्राप्त

एफ. एम. पर पी. एम. करें, अपने मन की बात

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