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सुरेश बाबू मिश्रा जी की 2 रचना एवं परिचय

सेक्युलर


मिश्रित आबादी वाले इस मुहल्ले का माहौल आज बेहद गर्म था । एक समुदाय के कुछ नौजवानों
ने यह टिप्पणी कर दी थी कि पूरे देश में कोरोना का संक्रमण एक खास जमात के लोगों के गैर
जिम्मेदाराना बर्ताव के कारण फैला है । यह बात दूसरे समुदाय के लोगों को बहुत नागवार गुजरी । देखते ही देखते दोनों समुदाय के लोग चैक मंे लामबन्द हो गए । इसी मुद्दे को लेकर दोनों पक्षों में बहस होने लगी । धीरे-धीरे बहस गाली–गलौज में बदल गई । नौबत हाथापाई तक पहुंच गई । मगर इससे पहले कि मार–काट शुरू होती दोनों समुदायों के कुछ समझदार बुजुर्गों ने बीच में पड़कर मामले को रफा–दफा कर दिया ।
तभी कोरोना वहां आया । उसने बिना किसी भेदभाव के दोनों समुदाय के लोगों को बारी–बारी से संक्रमित किया और अपनी विजय पर खुश होता हुआ वहां से चला गया ।

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लाइन में लगा शहर
सेठ रूपचन्द को लाइन में खड़े–खड़े तीन–चार घंटे हो गए थे । खड़े–खड़े उनकी टांगे दर्द करने लगी थीं । वे पानी लेने के लिए बाल्टी लेकर लाइन में लगे हुए थे ।
तीन दिन से पूरे शहर में पानी के लिए हाहाकार मचा हुआ था । जलस्तर नीचे पहुँच जाने से ना नलों में पानी आ रहा था और ना ही समरसेबल चल रहे थे । आज राजधानी से एक ट्रेन से टैंकरों में पानी लाया गया था । सबको पीने के लिए एक–एक बाल्टी दिया जा रहा था । सुबह से पूरा शहर लाइन में लगा हुआ था ।
सेठ रूपचन्द ने अपने सामने नजर डाली । अभी भी पचास–साठ लोग उनके आगे खड़े हुए थे । उन्होंने पीछे की ओर देखा, करीब डेढ़–दो हजार लोग उनके पीछे खड़े थे । उनके माथे पर पसीना छलछला आया । प्यास के मारे उनका गला सूखा जा रहा था । मगर सवाल पानी का था इसलिए वे पूरी मुस्तैदी के साथ लाइन में खड़े थे ।
धीरे-धीरे लाइन आगे बढ़ती जा रही थी । अब उनके आगे केवल तीन–चार लोग रहे थे । सेठ रूपचन्द के चेहरे पर सन्तोष की छाया झलक रही थी अब उन्हें कुछ देर में पानी मिलने वाला ही था ।
सेठ रूपचन्द के आगे अब केवल एक आदमी रह गया था । उसके हटने के बाद उन्होंने अपनी बाल्टी पानी लेने के लिए आगे बढ़ाई तभी पता नहीं कहां से एक लम्बा तगड़ा आदमी वहां आया और उसने सेठ रूपचन्द के हाथों से बाल्टी छीन ली और उन्हें जोर का धक्का दिया ।
सेठ रूपचन्द अपने आपको संभाल नहीं पाये थे और धक्के के कारण सड़क के पास में बनी खाई में जा गिरे । उनकी चीख निकल गयी थी । तभी उनकी आँख खुल गई । घर के सब लोग उन्हें घेरे खड़े थे और उनसे तरह–तरह के सवाल पूछ रहे थे ।
तभी सेठ रूपचन्द को समरसेबिल से पानी बहने की आवाज सुनाई दी । वे उठे और उन्होंने सबसे पहले समरसेबिल का स्विच ऑफ कर दिया ।
सुरेश बाबू मिश्रा

परिचय
नाम : सुरेश बाबू मिश्रा
पिता का नाम : स्व– गुलजारी लाल मिश्रा
माता का नाम : स्व– रम्पा देवी मिश्रा
जन्म तिथि : 05 जुलाई 1956
जन्म स्थान : ग्राम–चन्दोखा, जनपद–बदायूँ (उ–प्र–)
शिक्षा : एम–ए– (भूगोल एवं अंग्रेजी), बी–एडव्य
व्यवसाय : सेवानिवृत्त प्रधानाचार्य, राजकीय हाईस्कूल, बल्लिया ।
वर्तमान स्थाई पता : ए–979, राजेंद्र नगर, बरेली उत्तर प्रदेश
कृतियां : 1– सहमा हुआ शहर, 2– लहू का रंग, 3– थरथराती लौ, 4– बलिदान की कहानियाँ, 5– आविष्कार की कहानियाँ, 6– संघर्ष का विगुल, 7– जमीन से जुड़े लोग, 8–साकार होते सपने, 9– उजाले की किरन, 10– जानलेवा धुंआ ।
उत्कृष्टता के लिए पुरस्कार : 1– उत्तर प्रदेश हिन्दी संस्थान द्वारा साहित्य भूषण सम्मान–2018,2– अखिल हिन्दी साहित्य सभा, नासिक महाराष्ट्र द्वारा साहित्य श्री सम्मान–2018,3– के–वी–एस– हिन्दी साहित्य समिति द्वारा आचार्य चतुरसेन स्मृति सम्मान–2018,4– हिन्दी साहित्य परिषद, प्रयाग, इलाहाबाद द्वारा कथा श्री सम्मान,5– के-वी-एस– प्रकाशन, दिल्ली द्वारा के-वी-एस– गौरव सम्मान ।
6– ”कथादेश” नई दिल्ली द्वारा आयोजित अखिल भारतीय हिन्दी लघुकथा
प्रतियोगिता–2017 में द्वितीय पुरस्कार (लघुकथा–”समाधान” हेतु) ।
7– ”प्रेरणा अंशु” दिनेशपुर उत्तराखण्ड द्वारा आयोजित अखिल भारतीय लघुकथा
प्रतियोगिता में सान्त्वना पुरस्कार (लघुकथा–सोता रहा पुलसिया” हेतु) ।
8– शब्दांगन सामाजिक एवं साहित्यिक संस्था बरेली द्वारा पांचाल साहित्य
शिरोमणि सम्मान ।
9– रोटरी क्लब ऑफ बरेली साउथ द्वारा रुहेलखण्ड कहानी गौरव सम्मान ।
10– मानव सेवा क्लब बरेली द्वारा – कहानी श्री सम्मान–2015
अन्य साहित्यिक उपलब्धियां : 1– लेखन एवं प्रकाशन 1984 से निरंतर जारी ।
2– देश के विभिन्न समाचार पत्र-पत्रिकाओं में लगभग 100 कहानियाँ एवं 150
लेख प्रकाशित ।
3– आकाशवाणी रामपुर एवं आकाशवाणी बरेली से कहानी, वार्ता, नाटक एवं रूपक प्रसारित ।
4– दूरदर्शन बरेली से वार्ता, परिचर्चा एवं साक्षात्कार का प्रसारण ।
5– वाणी एवं सृजन पत्र्किा का सम्पादन ।
सम्पर्क सूत्र् (दूरभाष सहित) : ए–373/3, राजेन्æ नगर, बरेली–243122 (उ–प्र–)
मोबाइल : 9411422735
ई–मेल : ेनतमेीइंइनइंतमपससल/हउंपसण्बवउ

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