Latest Updates

“हम क्या करें”

चुग रहे थे हम गुल

हाथ में चुभा कांटा

गिरा साजी से फूल

   थी  मेरी  ही भूल

     हम क्या करें

थे खयालों में मशगूल।

उठा ज़मीं से धूल

चेहरा हो गया धुले-धूल

     हम क्या करें।

बच कर थे हम चल रहे

हौसला से थे हम बढ़ रहे

बिछा था पग-पग पर शूल

       हम क्या करें।

हवा ने पकड़ा है जोड़

मचा है आँधी जैसा शोर

हरी पत्तियां गिर रही पेड़ से

मिट रहा सारा उसूल

      हम क्या करें।

धार दरिया की हुई तेज

छूटा हाथ से पतवार

बहा ऐसा जोर वयार

टूटा आँधी से मस्तूल

  हम क्या करें।

नन्हें, भागलपुर।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *