Latest Updates

भाषा तभी बड़ी बनती है

अज्ञानी था मानव आदिम

सीखा प्रकृति से जीवन जीना

रहना गाना पशु पक्षी सम

उनकी भाषा में बतियाना

जैसी हुई पहचान स्वरों की

विविध प्राणियों तरु पत्तों की

गगन गरज की,वायु सरण की

सरित प्रवाह,जल थल औ नभ की

वैसी ही ध्वनियों की रचना

अभिव्यक्ति के लिए किया फिर

अंतर्ध्वनि विभिन्न भावों की

उसी रूप में प्रगट हुई फिर।

अपना नहीं ,अनुकरण मात्र था

ध्वनियों को गढ़ शब्द बनाए

वही उसकी प्रथम भाष्  थी

भाषा वही उनकी कहलायी।

क्षेत्र क्षेत्र की विविधता में

क्षेत्र क्षेत्र की भाषा पनपी

बातें वही, वही जरूरतें

भाषा ही बस विविध बन गयी।।

एकता भंग न होती इससे

सुदृढ़ होती जाती वह तो

राष्ट्र की पहचान बने गर

विश्व भी पहचान सके तब ।

एक विराट देश है भारत

जन के विविध समूह पलते हैं

कुछ आदिम ,पुरातन भी कुछ

कुछ देशी ,विदेशी भी कुछ।

चाहे भिन्न ही देश काल हो

चाह  दिशा उत्तर या दक्खिन

किन्तु अपने इसी देश को

प्यार अत्यधिक किया करतेवे

इसी प्यार को खिळने दें हम

वैर भाव का करें तिरोहण

एक सूत्र में बँधने हेतु

भाषा एक वरण करें हम

भाषा एक ऐसी अवश्य हो

हृदय हृदय को मिलने दे वह

भावों के आदान प्रदान को

सहज सहज संवहन करेवह

बस इतना ही काम हो उसका

एक सूत्र में बाँधे जग को

तुम जो हो ,वही मैं भी हूँ

प्रेषण का उन्माद हो उसका

स्वयं में ही अर्थ हो भाषा

ध्वनिरूप यहसंकेतों का

ध्वनि संयुक्त संकेत मानस के

अर्थ स्पष्ट करते जन मन के।

सहज क्लिष्ट को जाने समझे

क्लिष्ट सहज को वरे निरंतर

मध्यम रूप निखर कर सँवरे

सहज होती भाषा उत्तरोत्तर

एक बड़ी भाषा तो वह है

आत्मसात कर ले अन्यों को

चुन चुन शब्द प्रतीकों को

 घुल जाने दे बृहद नदी  वह

गंगा सी दे दे पवित्रता

कावेरी की सुन्दर लहरें 

यमुना और सरस्वती की

पय पुनीत संस्कृतिकी धारा।

विपुल साहित्य से हैं समृद्ध

भाषाएँ सभी पुरातन वृद्ध

प्रकृतिकीक्लिष्टताओं ने पर

सीमाओं मे किया चिरबद्ध।

किन्तु राष्ट्रभाव  से जुड़

शेष राष्ट्र से जुड़ जाने की

प्राप्त क्षमता भी  हो उसकी
एक अनिवार्य तत्व भाषा की।

विविध क्षेत्र के भाषाओं से

सहज सँवरी जो भाषा होगी

सहज संवहन वही करेगी

विविध क्षेत्र के भाव विचार को

सबके शब्दों को अनायास चुन

 व्यवहारिक बना ले निज को  

हिन्दी का ऐसा प्रयास ही

जोड़ रहा है हृदय हृदय को

बहुत बड़े प्रदेश में इसने

निज अंचल को फैलाया है

राष्ट्रभाव से किया सुशोभित

समेटलियासबकोआँचल में

परतंत्रता से मुक्ति कामना

इस भाषा ने भरी  देश मे

प्राप्ति हेतु भरी सबमें फिर

तत्सम्बद्ध संघर्ष भावना

जाग्रत किया सम्पूर्ण देश को

विपुल साहित्य केमाध्यम से

जनमन कोसंयुक्त किया फिर

राष्ट्र प्रति इस  मातृभाव से

यह सम्मान प्राप्त उसको ही

होगी सम्मानित सदैव ही

अपनी क्षमता दिग्दर्शित कर

विजयसर्वदा प्राप्त करेगी

पिघल पसर जाने कागुण

सबमें कहाँ कितना होता है!

टूट फूट कर भी भरे अंक मे

ऐसा मन कहाँ मिलता है!!

किन्तु राष्ट्र में एक भाव को

भरनें में जो सक्षम  होगी

सहज  आत्मीयता सृजन के

नव नव प्रयोग वह सहज करेगी

सच है कि प्रकृति हिन्दी की

आदिकाल से ऐसी ही है

निज क्षेत्र के उदारमन की

वह प्रतिच्छवि ऐसी ही है।

आगे  बढ़े,वह जोड़े  सबको

घुल मिल  जाने दे शब्दों को

उसके कुछ  मिश्रित स्वरूप को

हृदय कण्ठ का हार  बनाए।

भाषा तभी  बड़ी बनती है

द्वार हृदय के खोल लेती जब

सबके प्रिय प्रिय शब्दों को

हारहृदय बना लेती जब

अग्रजा है या कि अनुजा

मद का त्याग करना ही होगा

अनुजा बनकर भी सबका

स्नेहपात्र बनना ही होगा। आशा सहाय,

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *