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दोहा : सास ससुर ससुराल है,

सास ससुर ससुराल है,साला सलहज दूर।

आवत जावत मुह पिटे,नैन देखि मजबूर।।

ननद मिताई बांध के, चलते रिस्ते नात।

टूटी डोरी सांस की, झूठी सारी बात।।

पाहुन घड़ी बिताय के, निकले अपने धाम।

ठहरे जो पहरे पहर,बिगड़े सारे काम।।

भोगे अपने भोग सब,अपने करमे हार।

जीती -जाती जिंदगी,कर ली कैसे?क्षार।।

साढू के घर जाइये,हाथ रहे ना छूछ।

निकलें अपने धाम को, राम रहारी पूछ।।

गुरु के गुण तो लाख है, मांगों गुरु से भीख।

बांटो अपने ज्ञान को, गुरु की है ये सीख।

भीम प्रसाद प्रजापति

देवरिया उत्तर प्रदेश

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