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कर ऊर्ध्व चेतना जाग्रत मन

ब्रह्माण्ड रूपिणी

 भाव और चेतना स्वरूपिणी

असुरत्व नाशिणी

है अनादिकाल से संकल्पित तू

दानव प्रकृति को मुक्ति दे

देवत्व भाव से अग जग भर

मन को प्रकाश ते भर दे माँ।

था घनान्धकार

था रुका काल

गति बाधित थी

सरिताएँ नही प्रवाहित थी

संचरित नही वायु थी कहीं

जीवत्व नहीं पोषित था कहीं

अंधकार नष्ट कर सर्वत्र

फिर सूरज चंद्र नक्षत्रों को

गति तूने ही तो दी स्वतंत्र

सम्पूर्ण विश्वगराचर की

निर्मातृ  तू है शक्ति प्राण

निर्मातृ है तू मातृ है

प्रणम्य तेरा क्रोध भी माँ

 दया क्षमा स्वरूपा तू

करूणामयी मंगलमय तू

आधार तू, आकाश तू

कण कण अणु अणु में प्राण भर

है शक्ति का सम्भार तू

है रूप तू अरूप तू

ओ निराकार साकार तू

अस्तित्व विहीन तेरे बिन जग

 अस्तित्व की तू कारणस्वरूप

तू विश्व वेदना हर सत्वर

अमृत दे जग का विष ले हर

हूँआराधिका

भौतिकता से कर विरत मन

कर ऊर्ध्व चेतना जाग्रत मन 

आशा सहाय

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