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“कलयुगी राम”

जलाया जाता है हर वर्ष,

पुतला रावण का।

मगर क्या रावण जलता है?

नहीं, हम भूल करते हैं।

आज रावण नहीं, राम मरते हैं।

रावण तो सर्वव्यापी हो गया है।

भ्रष्टाचार, लूटपाट, डकैती और बलात्कार,

क्या ये रावण के नाती नहीं हैं ?

याद रखो, रावण कभी नहीं मरता है।

हंसी बनाता है हमारी,

कागज़ का वह पुतला।

” रावण” तो राज करता है।

मसल देता है राम को,

वह एक ही मुट्ठी में।

रावण कभी नहीं जलेगा।

अतिशयोक्ति नहीं है।

हममें से हर एक पर, छाया हुआ है वह,

किसी पर थोड़ा, किसी पर ज्यादा।

कलयुगी राम सोच में है।

रावण को समर्पण करे या यमराज की

शरण ले।

अर्चना त्यागी

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