Latest Updates

कोरोना काल!कैसा हाल!!

बड़ी अजीब विडम्बना है, जब चार माह पूर्व जब कोरोना शुरुआती चरण में था तो लोग सजग थे,  पूरी सावधानी बरत रहे थे

पर अब जब कोरोना ने विकराल रूप धारण कर लिया है,24 लाख से ऊपर केस हो गये, रोज़ पचपन-साठ हज़ार केस आ रहे हैं,यही हाल रहा तो दिसम्बर आते आते यह संख्या एक करोड़ को छू जायेगी।

सच,हमने प्रकृति का इतना अधिक दोहन कर लिया था कि वो कराह उठी थी,हमें कई दशकों से कई बार बाढ़, सूखा, भूकम्प,सीमित क्षेत्र में महामारी, तूफान,

चक्रवात,ज्वालामुखी का फटना आदि कई सबक सिखाये,पर जब हम

किसी भी रूप में,कैसे भी बाज नही आये तो प्रकृति ने स्वयमेव ही न्याय ढूंढ लिया,इंसान कई माह से घर में बंद है,जल,थल, नभ सब जगह पूरा यातायात बन्द,कुछ बहुत जरूरी को छोड़ कर सभी गतिविधियां बन्द,चार दशक पहले जैसा शुद्ध व शांत,निर्मल

वातावरण।हर ओर सिर्फ मौत की सिहरन!फिर भी कमाल! कि दुनिया चल रही है!चलती रहेगी!

सबक बहुत सीख लिये इन्सान ने–

जितने में अब गुज़ारा कर रहे हैं, वास्तव में जरूरत बस इतने की ही थी,हम कभी समझे ही नहीं,सो अब कुदरत समझा रही  है,कभी सोचा नहीं था कि

ऐसे भी दिन आयेंगे जब छुटियाँ तो होंगी पर मना नहीं पाएंगे। रास्ते खुले होंगे पर कहीं जा ही नहीं पाएंगे।जो दूर हैं या रह गये उन्हें बुला नहीं पायेंगे और जो पास हैं उनसे  तो हाथ भी नहीं मिला पाएंगे जिनके साथ वक्त बिताने को तरसते थे उनसे भी ऊब जायेंगे।

बड़े तो ऐसी परिस्थिति को समझ भी लें पर बच्चे क्या करें, क्या अनुभव करें,सरल व कोमलह्रदय हैं वो तो, खेलना कूदना भी बन्द!आज कल चल रही ऑन लाइन चल रही

क्लास में एक तीसरी कक्षा के बच्चे ने कोरोना पर निबन्ध में क्या लिखा-

“कोरोना एक नया त्यौहार है जो होली के बाद आता है, इसके आने पर बहुत लंबी छुट्टियां हो जाती है।सब लोग थाली,ताली और घँटे बजा कर व खूब सारे दिये जल कर इस त्यौहार की शुरूआत करते हैं, स्कूल ,ऑफिस सब बन्द हो जाते हैं। सब घर पर ही रहते हैं, मम्मी

रोज़ नये फ़ूड बना कर फेसबुक पर डिस्प्ले करती है, पापा बर्तन व झाड़ूपोंछा करते हैं। यह त्यौहार मास्क पहन कर व नमस्ते करके मनाया जाता है।इसमें कड़वा काढ़ा पीना भी जरूरी होता है।इस त्यौहार में नये कपड़े नहीं पहने जाते पापा बरमूडा व बनियान पहनते हैं, मम्मी गाउन या पाजामा सा पहने रहती है

इस मे मम्मी पापा के फ्रेंड व पड़ोसी भी घर नहीं आते,घर को दीवाली की तरह सजाना नहीं पड़ता।

सबसे अच्छी बात मम्मी खुद फोन देती है,पहले की तरह डांट नहीं लगाती। हम सबके अलावा पूरे विश्व में इस त्यौहार को सभी न्यू ईयर की तरह मनाते है।”

बच्चे ने जो महसूस किया लिखा,पर अब हम बड़ों को तो खुद भी व छोटों को भी कोरोना के नियमों में रह कर जीवन जीना सीखना होगा क्योंकि अभी यह परिस्थिति इतनी जल्दी काबू में आने वाली नहीं है। कोरोना के कारण सारा परिदृश्य ही बदल गया है,लम्बे समय तक बदलाव की उम्मीद नहीं,इसी से जूझते हुए प्रशासन व जनता को सामजंस्य बनाये रखना होगा,तभी कुछ निज़ात मिल पायेगी।

इस कोरोना काल ने कितनी तरह के अनुभव कराये,कुछ बानगी देखिये–

“साफ हो जाएगी हवा पर चैन की सांस न ले पायेंगे”

“नहीं दिखेगी कोई कैसी भी मुस्कराहट,चेहरे मास्क से ढक जायेंगे।”

जो खुद को समझते थे शहंशाह वो मदद को हाथ फैलाएंगे।

“जिन के रौब से घर में रहने से होती थी घबराहट वो हो जायेंगे,ऐसे अकेले

कि किसी की आहट भी न सुन पाएंगे।”

“जो कहते थे सारी दुनिया मेरी मुट्ठी में है, उनके जनाज़े में मुठ्ठी भर भी लोग न जुट पाएंगे।”

“जब उबर जाएंगे इस महामारी से,जीना सीख जाएंगे होशियारी से, रह रह कर,दिन ये लॉक डाउन के,बार बार याद आयेंगे।”

“हर पल नज़र आती मौत की आहट ने जीने की चाहत पैदा कर दी, जिंदगी में जगमगाहट व रिश्तों में गर्माहट पैदा कर दी।”

“एक बात समझ आ गई  कि कोई पादरी,पुजारी ग्रन्थी,मौलवी या सन्त या महात्मा,ज्योतिषी,दरवेश, पीर एक भी रोगी को नहीं बचा सका।”

“शहर की बदनाम औरत को कोरोना क्या हुआ, शहर के कई इज़्ज़तदार लोग क्वारन्टीन हो गये।”

“यह भी समझ में आया “कि बिना उपयोग के सोना,हीरा,चांदी,पेट्रोल,डीज़ल तेल का कोई महत्व नहीं।”

“यह भी भान हुआ कि हम और हमारी सन्तान बिना जंक फूड के भी जिन्दा रह सकते हैं।”

“यह भी एहसास हो गया कि एक साफ सुथरा और स्वच्छ जीवन जीना कोई कठिन कार्य नहीं है व यह हमारे ही हित में है।”

“पूरी दुनिया को पता चल गया कि भोजन पकाना केवल स्त्रियां ही नहीं जानतीं,मर्द भी कम नहीं।”

“एक बात समझ में आई कि हम विश्व के “अधिकतर लोग अपना अधिकतर  ऑफिसियल कार्य घर से भी कर सकते हैं।”

“महानगरों के बच्चों को पहली बार विश्वास हुआ कि तारे वास्तव में टिमटिमाते हैं, क्योंकि आसमान ही इतना साफ हो गया।”

“पहली बार पशु-पक्षियों को लगा कि यह संसार उनका भी है,स्वच्छन्दता महसूस करने का अपना ही आनन्द है।”

लॉक डाउन में घर बैठने को जबर्दस्ती का घरवास  नहीं समझिये,इसको पारिवारिक मधुमास के रूप में खुशी व आनन्द के साथ मनाइये,यह समय आपको जिन्दगी

भर याद भी आयेगा और नये तरीके से,जीवन जीने का नया एहसास आपकी अक्षुण्ण विरासत का,आपकी अमिट धरोहर का एक अभिन्न अंग बन जायेगा।

-राजकुमार अरोड़ा ‘गाइड’

कवि,लेखक व स्वतंत्र पत्रकार

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *