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डर

अब तो मैं घर से निकलती नहीं
फिर भी आदमियों से डरती हूँ मैं माँ

रोज़ जब स्कूल जाती हूँ
रिक्शे वाले की टच से डरती हूँ मैं माँ
गेट पर गार्ड रोकें मुझे कभी
सहम के बैग छाती से चिपकाती हूँ माँ
कुछ खरीदने भेजती हो जब
दुकानदार के हाथ पकड़ने से डरती हूँ मैं माँ

अब तो मैं घर से निकलती नहीं
फिर भी आदमियों से डरती हूँ मैं माँ
भैया के दोस्त रास्ता रोक बात करते कभी
भैया बोलती जिन्हें उन से भी डरती हूँ माँ
अकेले घर में कोचिंग सर के अचानक आने से
बीमार हूँ, बोल गेट लॉक कर आती हूँ मैं माँ
कामवाली को रोटी देने आए
उसके बेटे से भी डर जाती हूँ मैं माँ

अब तो मैं घर से निकलती नहीं
फिर भी आदमियों से डरती हूँ मैं माँ
दादाजी जब कंधे पर हाथ रखते हैं
अफसोस, डर से सहम जाती हूं मैं माँ
ताऊ जी की चॉकलेट बहुत कड़वी लगे अब
चिकोटी वो काटते हैं पिछवाड़े में माँ

अब तो मैं घर से निकलती नहीं
फिर भी आदमियों से डरती हूँ मैं माँ
अब तो भैया से भी डरती
और पापा से भी डर लगने लगा है
पड़ोस की आंटी को वो स्वीटी बोलते हैं जब
जैसे जुनेजा अंकल रिंकी की मम्मी को
क्या वैसे पापा भी हमको छोड़ जाएंगे माँ

अब तो मैं घर से निकलती नहीं
फिर भी आदमियों से डरती हूँ मैं माँ
स्कूल में कल सबसे प्यारी सखी
छत से कूद मरने चली थी माँ
नीचे उतार, खूब डांटा उसे
हाथ में ब्लेड के निशान खूब लगे थे माँ
सुना कुछ लोगों ने बुरा किया उसके साथ
बहुत मारा मसला कुचला बेचारी का शरीर
आगे कुछ ना समझ पाई सहम गयी मैं माँ

अब तो मैं घर से निकलती नहीं
फिर भी आदमियों से डरती हूँ मैं माँ
जो यह दुनिया है यह ऐसी क्यों है
बलिए बलिए माली काका जब बुलाते हैं मुझे
डर के दूर भाग जाती हूँ अब मैं माँ
क्या मैं भी लोगों की हैवानियत का शिकार बनूँगी
क्या मेरे साथ भी सखी जैसा कुछ होगा
जाने क्यों यह अनजाना डर लगता है
मैं तो ब्लेड से अपनी कलाई काट जान दे दूंगी

जानती हो क्यों?
आदमियों के वहशीपन से डरती हूँ मैं माँ
दुनिया की भीड़ में सहम-सहम जाती हूँ मैं माँ

अंतराष्ट्रीय महिला दिवस 8 मार्च 2020
एक बार सच में मुझे समर्पित कर दो न माँ
इस डर के डर को मेरे ज़हन के
कण कण से मिटा दो, भुला दो न, मेरी माँ

© डॉ. नीलू नीलपरी

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