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दादी का दर्द

हंसो दादी लगभग 70 वर्ष की थीं।वह अपने पोते के साथ शहर में एक छोटे से मकान में रहती थीं।जिसमें एक ही कमरा था।दादी के साथ उनका पोता निखिल रहता था। वह अपने बेटे बहू को खो चुकी थीं।दादी को कुछ पैसे पति की पेंशन से मिलते थे।दादी कीपैड मोबाइल चलाया करती थीं।निखिल की जिद थी कि दादी स्मार्टफोन खरीद लें।

निखिल, “दादी कितने लोग स्मार्ट फोन चला रहे हैं।आप भी ले लो न। कीपैड में कुछ भी नहीं है।” दादी, ” बड़ा जिद्दी बच्चा है।कितनी बार कह चुका है। सातवीं में आ गया।अब पढ़ाई करनी है बेटा तुम्हारे स्कूल से तो ऑनलाइन पढ़ाई नहीं हो रही है।ठीक है ले लूंगी।यह कोरोना पता नहीं कब जाएगा।”

अगले दिन हंसो  दादी ने पड़ोसी से मोबाइल मंगाया।पड़ोसी ने मोबाइल चालू कर दिया। निखिल मोबाइल चलाना सीख गया।

दादी मोबाइल पर समाचार भी सुनती थीं।दादी ने कोरोनावायरस से बचने के उपाय तो बहुत दिनों से शुरू कर दिए थे।

निखिल,”दादी मुझे बुखार सा लग रहा है।कुछ खांसी महसूस हो रही है।पूरे बदन में दर्द सा हो रहा है।कुछ अच्छा नहीं लग रहा। “

दादी, “अरे बेटा, चल डॉक्टर को दिखा दूं तेज बुखार लग रहा है। अरे राम।”

हंसो दादी निखिल को लेकर डॉक्टर के पास गयीं। डॉक्टर ने निखिल का बुखार चेक किया और दवा लिख दी।

डॉक्टर,”यह दवा ले लेना माँ जी। तीन दिन खानी है।बुखार सामान्य है।वैसे बचाव फिर भी रखना है।दूरी और मास्क जरूरी है। कोई समस्या हो तो मेरा कांटेक्ट नंबर है।इसपर मुझे बताएं।

तीन दिन बाद बुखार ठीक नहीं हुआ तो टेस्ट होगा। “

दादी और निखिल दवा लेकर घर आए। दादी ने व्हाट्सएप पर स्टेटस लगवाया। “आवश्यक हो तभी गृह पर आएं।मेरे पोते को तेज बुखार है।”

जो लोग उनके घर आते जाते थे।स्टेटस देख कर चिढ़ गए और कहने लगे, “यह दादी बड़ी घमंडी हो गई है। देखो कैसा स्टेटस लगाया है।एक तो हम इसके काम आ जाते हैं और दादी को घमंड आ गया।”

पड़ोस में एक मोहन नाम के व्यक्ति रहते थे। बहुत ही समझदार थे।उन्होंने स्टेटस देखा तो चौंक गए।दादी को कॉल किया।, ” हेलो नमस्कार दादी, निखिल को बुखार आया है।ठीक है बचाव रखिए।दवा समय पर दीजिए।कोई परेशानी हो तो मुझे बताना। बुखार है तो आप बाहर से ही बात कीजिए। “

दादी दुखी स्वर में, “अरे मोहन बेटा बड़ी राहत मिली।तुमने फोन किया तो लगा कोई अपना है। आज तीसरा दिन है।निखिल के बुखार को।किसी ने पूछा तक नहीं।पता नहीं क्या बात है।”

मोहन, “कोई बात नहीं।कोई समस्या हो तो मुझे बताना। चिंता न करो।सब ठीक होगा।”

दादी,” ठीक है बेटा।खुश रहो।ईश्वर तुम पर कृपा करे। “

बात करके दादी ने थोड़ी राहत महसूस की। फिर दादी मूंग की दाल बनाने चली गईं।तभी एक फोन आया।

दादी, “अरे यह तो भावना का फोन है।”

दादी ने फोन उठाया।

भावना, “हेलो दादी”

दादी, “हां भावना।कई दिनों में फोन किया  भावना। मै तो बड़ा याद कर रही थी।”

भावना, “और क्या तुम तो घर में आने से मना करती हो।बड़ी बदल गई हो।कोई आए या न आए।आप तो मना मत करो न।”

दादी, “कितना संक्रमण चल रहा है।डॉक्टर ने भी कहा बचाव करो। पोते को बहुत तेज बुखार है। मैं क्या करूं।वैसे मैं पहले से ही सावधान थी।” भावना, “चलो छोड़ो दादी। हुँ।”

कहकर फोन पटक दिया। दादी निखिल को दिखाने डॉक्टर के पास गई क्योंकि 3दिन हो गए थे आज।

डॉक्टर ने कहा, “निखिल अब ठीक है। अब कोई परेशानी नहीं है।हल्की सी कमजोरी है। यह भी धीरे-धीरे ठीक हो जाएगी। वैसे आप समझदार हैं। पढ़ी-लिखी हैं।खाने -पीने का ख्याल रखें।”

दादी निखिल के साथ वापस आ गयीं।जब घर के रास्ते में थीं पड़ोसियों ने बातें कीं।बहुत सारी बातें उनको बोली।कितने लोग थे जिनको स्टेटस बहुत बुरा लगा था।रिश्तेदारों ने भी फोन बंद कर दिया। जो रोज बात करते थे उन्होंने।दादी घर आयीं।और दुखी थीं।सोच रही थीं, “

कैसी महामारी है 2021 में तो अब चली जाए। सब कुछ बदल गया।पढ़ाई भी खराब हुई।लोगों के काम छूट गए।पर जान जरूरी है।सावधानी जरूरी है।आज कोई बुरा माना है।कोई बात नहीं कल समझ जाएगा।मैंने तो सब की भलाई का सोचा।कुछ भी हो पर दूरी जरूरी है।”

(आंसू टपकाते हुए )

पूनम पाठक बदायूं

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