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मित्रता दिवस पर सखी को समर्पित कविता

मंजू लता

हे ! सखी फ़िर कब मिलेंगे
याद आती हैं तुम्हारी
खोजती हैं आंखे तुम्हारी चंचलता
तुम्हारे कोमल अधरों की मुस्कुराहट

हे ! सखी फ़िर कब मिलेंगे
खोजती हैं मेरी आंखे तुम्हारा भोलापन
मेरा रूठना तुम्हारा मनाना
साथ ही डेरी मिल्क गिफ्ट करना

हे ! सखी फ़िर कब मिलेंगे
याद आती हैं क्लास की बाते
एक दूसरे में खोकर खाली पीरियड में
बाते करना उस वक़्त मेम का आना

हे ! सखी फ़िर कब मिलेंगे
इस जुदाई भरे लॉकडाउन ने दूर कर दीया
जुदाई भरे लम्हे एक विरहिणी की तरह कट रहे हैं
बस आस बची हैं ! प्रिय कभी तो आओगे

हे ! सखी फ़िर कब मिलेंगे
बस पुरानी यादो में दिन कट रहे हैं
बस आस बची हैं ! मिलेंगे जरूर !
मिलेंगे जरूर !

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