Latest Updates

राष्ट्र-गीत : पहरुये ! सावधान रहना…

घर   में  सेंध   लगाने   की  वे  फिर  करते   तैयारी,

            पहरुये !  सावधान   रहना।

पश्चिम सीमा   पर   खतरा  है,पूरब   में  मत  डोल,

अभी रात   बाकी है   कितनी   धीरे- धीरे      बोल,

कल जो हाल हुआ हम सबका,उसका दुख है भारी,

           पहरुये !  सावधान   रहना।

तुमने   कितने धोखे   खाए  विश्वासों   में    पड़कर,

ये व्यापारी   नहीं,   न रहबर  मात्र  सियासी तस्कर

लूट लिए   हैं अबतक  कितने  इनने महल-अटारी,

           पहरुये !  सावधान  रहना।

आधी सदी   अभी  बीती   है   फिर  ये  पैर  बढ़ाए,

पहचानो   खूनी   चेहरों  को  जुल्म  जिन्होंने  ढाए,

आग  लगाकर  रहे  बुझाते,  बढ़े   नहीं    चिनगारी,

           पहरुये !  सावधान   रहना।

इनकी   काली करतूतों  से   भरा   हुआ   इतिहास,

गाथा   दुहराती   हैं   अब भी   गंगा- यमुना- व्यास,

पर्वतराज हिमालय    कहता  आए   फिर  न  बारी,

           पहरुये !  सावधान  रहना।

पाश्च्य -संस्कृति   के  आका,    तुम  पूरब  के प्रहरी,

जागो! जागो!  त्यागो तन्द्रा    लगे  नींद   न  गहरी,

इन   दुभाषियों   के सपने   भी,दिखते  हैं  हत्यारी,

           पहरुये !  सावधान   रहना।

वहां आग  का  राग  भरा है,  यहाँ   राग  की आग,

फैल न जाए  क्रांत हवा  संग शुष्क ज़हर का झाग,

करुणा की काया में कातिल दिखता कभी दुखारी,

           पहरुये ! सावधान   रहना।

मोड़  हवा  के   रुख   को उल्टे   तुमने   गाए गीत,

चाहे  कितनी  बाधा आए   होती  सच  की   जीत,

राम- कृष्ण- गौतम- गांधी  की धरती पूज्य हमारी,

           पहरुये !  सावधान  रहना।

                                  डॉ.राहुल, नयी दिल्ली

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *