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संकीर्ण सोच से सजी व्यवस्था में

डॉक्टर सुधीर सिंह

संकीर्ण सोच  से  सजी व्यवस्था में,

इंसान से ज्यादा शैतान  ही है यहां।

कुछ व्यक्ति कहे  तो कोई बात नहीं,

यह तो यहां के समूह  का है कहना।

प्रश्न की गंभीरता ने जोर देकर कहा,

जरा  इस सच्चाई का पता तो लगा।

गौर से देखा तब  घर-घर काआंगन,

लग गया कुछ तो  है दाल में काला।

जिधर झांका उधर ही कलह-क्लेश,

सहोदर भाई तक  में कहीं प्रेम नहीं।

खोजने लगा जब भरत जैसा भ्राता,

वैसे भाई से कहीं भेंट हुई  ही नहीं।

घर-घर शकुनि सा  चालबाज देखा,

समाज को समझा घर को देखकर।

व्यक्ति से  ही  तो  समाज बनता है,

मिल गया सवाल का सटीक उत्तर।

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