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हिन्दी दिवस (गीत)

बाज उठी होठों पर, आज मेरी हिन्दी।

ममता के ऑचल में, माथे की बिन्दी।

गाती है गली गली ,सावनी सुहानी।

फागुनी हवा में ,रंग घोल रही पानी।

सरमाते अगहन की, मुस्कान मंदी।

               बाज उठी————

छायी मायुसी में ,रंग भर देती है।

रूठे हुए नैनों में,ठंढ भर देती है।

बहके हुए मन में,प्यार की कालिंदी।

                 बाज उठी————-

गहरे समन्दर में , खूब नाचती है।

गूंगे और बहरे के,भाव बांचती है।

झांकता आकाश छोड़ ,तमिल व सिंधी

                बाज उठी——–

           भीम प्रसाद प्रजापति

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