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संकल्प

दीपू ज्यादातर विद्यालय में देरी से ही

पहुँचता था । देर से आने वाले बच्चों की अलग

लाइन बनवाई जाती है तथा उनका नाम भी उनकी कक्षा के अनुसार लिखा जाता है ताकि

उनके कक्षाध्यापक उन्हें जान सकें और समझा

सकें । उस रजिस्टर में नवीं कक्षा में पढ़ने वाले दीपू का नाम एकाध दिन छोड़कर रोज ही लिखा होता।उसके कक्षाध्यापक केशव प्रसाद

उसे रोज समझाते की देरी से विद्यालय मत आया करो,छुट्टी मत लिया करो पर वही ढाक

के तीन पात ।दीपू ज्यादातर छुट्टी लेता या देर

से विद्यालय आता ।आखिर एक दिन तीन दिन

की छुट्टी के बाद देरी से आये दीपू पर केशव जी

बरस पड़े ।डाँट खाने के बाद दीपू की आँखें बरस पड़ी और केशव जी उसमें पूरी तरह से भीग गये ।

        दीपू एक होनहार छात्र था । अभी आठवीं कक्षा तक समय पर आना सौ प्रतिशतउपस्थित होना उसकी खासियत थी । चाहे खेल हो या पढाई हर क्षेत्र में ही अव्वल ।ऐसा लड़का पढ़ाई में तो पीछे हो ही रहा था वह खेल से भी विमुख हो रहा था ।वह छुट्टी होते ही सीधे घर भागता था। उसके अध्यापक को उसके इस बदलाव पर आश्चर्य हो रहा था ।उन्होंने उससे कई  बार पूछने की कोशिश की पर वह टाल गया ।

“कोई बात नहीं है सर,अब मैं छुट्टी नहीं लूँगा

और समय पर विद्यालय आऊँगा ।”

       पर फिर वही सारी चीजें ,उसकी उदासी,

विद्यालय देर से आना छुट्टी लेना आदि ।केशव

जी जब जब उसके माता-पिता को विद्यालय बुलाते कोई न कोई बहाना सुनने को मिल ही जाता ।आखिर परेशान होकर केशव जी ने समय निकालकर दीपू के घर जाने की योजना बनायी

     रजिस्टर से दीपू के घर का पता नोट करके

छुट्टी के बाद दीपू को बिना बताये उसके पीछे

पीछे चल दिये । बाइक उन्होंने स्कूल में ही छोड़

दी थी ताकी दीपू अगर रास्ते में कहीं रुकता है

तो भी उसे रंगे हाथों पकड़ सकें ।

   ” अरे केशव जी ये पैदल ही कहाँ चले ?”

                कोई न कोई परिचित मिल ही जाता और वे .”कुछ नहीं बस कुछ जरूरी काम है ।” कहकर उससे पीछा छुड़ाकर दीपू के पीछे हो लेते ।काफी दूर और संकरे रास्ते से गुजरते हुए

उन्हें दीपू पर तरस भी आ रहा था एक छोटा

लड़का इतनी दूर चलकर आता है । आखिर

एक मकान में दीपू अन्दर जाने लगा । उसमें

कई छोटे छोटे कमरे बने थे । दीपू ने एक कमरे

का ताला खोला बैग रखकर फिर बाहर आया और बगल के कमरे में चला गया । केशव जी

को लगा की यह बगल के कमरे में क्यों गया ?

वे कुछ और सोचते की उन्होने देखा दीपू एक

छोटी लड़की को लेकर उस कमरे से निकलकर

अपने कमरे में जा रहा है।उसका छोटा भाई भी

बैग टांगे आ गया शायद वह पास के किसी प्राइमरी स्कूल में पढ़ता होगा । फिर इसके माता पिता कहाँ है ? गाँव भी जाते तो छोटी लड़की को तो साथ ही ले जाते ही । शायद दोनों किसी काम से गये हों ?केशव जी कुछ भी समझ नहीं पा रहे थे ।आखिरकार केशव जी ने

बगल वाले परिवार से दीपू के बारे में जानकारी हासिल करने के लिए उनसे बातचीत करने का मन बनाया ।

           बगल के घर में खटखटाने के बाद एक बुजुर्ग महिला बाहर आयी । केशव जी ने उसे अपना परिचय दिया फिर दीपू के बारे में पूछा,  “दीपू मेरे ही विद्यालय में पढ़ता है ,इसके माता-पिता से मिलना था ।”

“नमस्ते सर आइए घर में बैठिए,मैं चाय बनाती

हूँ ।”

  “नहीं चाय रहने दीजिए ,बस दीपू के बारे में जो जानती हैं बताइए। “

     ” सर जी इसके पिता तो छह महीने से एक

सरकारी अस्पताल में भर्ती हैं और माँ उनको भी देखती है और किसी कम्पनी में भी काम

करती है ।”

  “क्या हुआ इसके पिता को । “

“क्या बतायें सर जी , वह रोज शराब पीकर घर

आता था और उसी को लेकर घर में रोज लड़ाई झगड़ा होता ही रहता था । एक दिन गुस्से में

आकर इसके बाप ने तेजाब ही पी लिया ।”

“फिर?” केशव जी सहम से गये ।

“फिर क्या ,लोग उसे लेकर अस्पताल भागे ,

किसी तरह जान तो बची पर छह महीने से

अस्पताल में ही है ,छुट्टी अभी भी नहीं मिली है।

माँ बेचारी दिन में कम्पनी में काम करती है और रात में खाना लेकर फिर अस्पताल जाती है और उसे भी सम्भालती है ।”

फिर बच्चे ?

” अरे सर जी कुछ दिन रिश्तेदार रहे फिर वे भी

भाग गये । अब घर का काम तथा बच्चे दीपू ही

सम्भालता है ।”

    केशव जी आवाक़ से खड़े थे । एक छोटे से नवीं कक्षा के बच्चे पर इतना सारा बोझ ? ये

परिस्थितियाँ इंसान को कितना मजबूर कर देती

हैं ? उस महिला को धन्यवाद कहकर केशव जी दीपू के कमरे की ओर बढ़ चले ।

दरवाजा खटखटाने पर दीपू के छोटे भाई ने

दरवाजा खोला । दीपू गैस के चूल्हे पर कुछ बना रहा था । सामने केशव सर को देखकर दीपू चकित रह गया ।

सर जी आप ?

मुझे नहीं खिलाओगे ?

अरे सर क्यों नहीं ,आप बैठिए कहकर चारपाई

पर फटे चद्दर को बिछाने लगा ।

“इसे रहने दो ,ऐसे ही बैठ जाऊँगा ।” चारपाई

पर बैठते हुए केशव सर ने कहा ।

दीपू से उसके घर का सारा हालचाल पूछकर

उन्होंने दीपू तथा उसके भाई को ट्यूशन पढा़ने

छोटी बहन का एडमिशन नर्सरी में कराने तथा

उसके पिता के अच्छे इलाज की जिम्मेदारी अपने ऊपर ले ली ।

             दीपू जैसे प्रथम स्थान पाने वाले एक कुशाग्र बच्चे का भविष्य बचाने का केशव जी

ने संकल्प ले लिया था ।

डॉ.सरला सिंह

दिल्ली

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