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मानसिक रोगी हो रहे हैं लोग।

लॉक डाउन खुलने की प्रक्रिया निरंतर जारी है। ऐसा लगता है कि जनजीवन सामान्य हो गया है। सड़कों पर दौड़ती हुई गाड़ियाँ  पब्लिक ट्राँसपोर्ट से लेकर प्राइवेट दुपहिए चौपहिए वाहनोऔर छोटे, मध्यम कोटि के शहरों,  ग्रामीण और अर्ध शहरी क्षेत्रों में  पैदल चलनेवाले लोगों की बढ़ती हुई भीड़भाड़  देख कर ऐसा लगता है कि लोग…

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इमरती बड़ी चुलबुली… (बाल-कविता )

इमरती है बड़ी चुलबुली सोनपपड़ी अकड़ी अकड़ी कलाकंद दे रहा आनंद बरफी बिफरे करे फंद रसगुल्ला कर रहे हल्ला लड्डू ने झाड़ा है पल्ला मक्खनबड़ा रहते हैं मौन खीरमोहन की चली पौन जलेबी रस में डूबी पड़ी रबड़ी बात करे तगड़ी मोहनभोग लगे अच्छे गूँजी दे रही है गच्चे घर अंदर इनके हाँके हैं बाहर…

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अन्धेरे चौराहे पर अन्धा कुआँ

आज सच में हमारे देश की परिस्थिति कुछ ऐसी ही हो गई है,किसी को कुछ समझ ही नहीं आ रहा कि सही दिशा में,सही विकास की राह पर कैसे आगे बढ़ा जाये। हर कोई अंधेरे में ही हाथ पांव मारता दिखाई दे रहा है। कांग्रेस के साठ साल के शासन को पानी पी पी कर…

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नेहरू जयंती विशेष – आधुनिक भारत के सक्रिय राजनेता !

            जवाहरलाल नेहरू का जन्म 14 नवम्बर 1889 को ब्रिटिश शासन काल के भारत में इलाहाबाद बदला हुआ नाम प्रयागराज  में हुआ था । जवाहर के पिता मोतीलाल नेहरू एक धनी बैरिस्टर जो कश्मीरी पण्डित थे। मोती लाल नेहरू सारस्वत कौल ब्राह्मण समुदाय से थे,  उनकी माता का नाम  स्वरूपरानी थुस्सू था, जो लाहौर में…

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दिव्य दृष्टि के दीप जलाएँ

कविता मल्होत्रा बाल दिवस और दीपोत्सव, एक ही दिन आने वाले, आत्मा को आनँदित करते दोनों उत्सव, भारत के प्रत्येक नागरिक को, दोहरी भूमिका निभाने के लिए, सत्यम शिवम् सुँदरम की भावना के प्रति फिर एक बार आगाह कर रहे हैं। हमारे देश के मौजूदा हालातों, और बाज़ारू चकाचौंध के प्रति आकर्षित होता, मासूम बच्चों…

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आखिर क्यों बदल रहे हैं मनोभाव और टूट रहे परिवार?

भौतिकवादी युग में एक-दूसरे की सुख-सुविधाओं की प्रतिस्पर्धा ने मन के रिश्तों को झुलसा दिया है. कच्चे से पक्के होते घरों की ऊँची दीवारों ने आपसी वार्तालाप को लुप्त कर दिया है. पत्थर होते हर आंगन में फ़ूट-कलह का नंगा नाच हो रहा है. आपसी मतभेदों ने गहरे मन भेद कर दिए है. बड़े-बुजुर्गों की…

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ज़िन्दगी के रंग

ज़िन्दगी एक पहेली सी लगती है, दुखो की छाव एक सहेली सी लगती है । हम तो बैठे थे इक आशा की किरण थामे पर अब आशा करना एक नादानी सी लगती है । ज़ख्म जैसे भी हो हमेशा दर्द ही देते है , अब तो ख़ुशी महसूस करना भी , इक बात पुरानी लगती…

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सत्याग्रह के सही मायने !

आज के समाज में  राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी के विचार निसंदेह प्रासंगिक है । जिस सत्य अहिंसा और सद्भाव की बात राष्ट्रपिता गांधी करते थे वो आज के वर्तमान समय में लालच लाचारी और भ्रष्टाचार की भेट चढ़ चुकी है । प्रत्येक वर्ष हम दो अक्टूबर को महात्मा गांधी और लाल बहादुर शास्त्री जी का…

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“बैंक मैनेजर का चरित्र”

पंजाब नेशनल बैंक के चीफ मैनेजर बरियार साहब अनुशासन के मामले में कोई, किसी प्रकार से समझौता नही कर सकते थे या नहीं करते थे।अनुशासन के पक्के होने के कारण पूरे राज्य के सभी बैंक के लोग(कर्मी)उन्हें जानते थे।किसी भी शाखा में पदस्थापना होने पर उनके योगदान करने से पूर्व ही उस बैंक के सभी…

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“महाप्रलय मचाओ माँ”

बस बहुत हो चुका हलवा- पूरी कन्या पूजन भी बहुत हुआ अब नहीं सुरक्षित कहीं बेटियां सब कर रहे कर- बद्ध प्रार्थना  नवरात्रों में भोग लगाने अब घर- घर मत आओ माँ कितनी निर्भया और बलि चढ़ेंगी ? आज हमें बतलाओ  माँ मैया सीता तो  निष्कलंक थी क्यूंकि लंका में  रावण था जनक नंदिनी निष्कलंक…

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