कविता और कहानी
मैं फिर लौट आऊंगी
मैं फिर लौट आऊंगीधूप के उजास सीकि करूंगी ढेरों मन भर बातेंउस जाती हुई ओस से भीजिसके हिस्से में आती हैं सिर्फ रातें ही !! मैं फिर लौट आऊंगीपहली बारिश सीकि सिमट जाऊंगी मिट्टी मेंऔर होती रहूंगी तृप्तउसकी सोंधी-सोंधी सी महक में !! मैं फिर लौट आऊंगीटूटे हुए तारे सीकि सुन लूंगी हर एक दुआहर…
होली गीत
रंग जितने हो बेशक लगाया करो।चाहे जितना मुझे तुम सताया करो।।रोज खेलो भले मुझसे होली मगर।सामने सबके रंग न लगाया करो।। इस होली में घर तेरे आऊँ प्रिये।गोरे गालों पे, रंग मैं लगाऊँ प्रिये।।चाहे लहंगा और चुनरी पहिनना पड़े।चाहे तेरी सखी मुझको बनना पड़े।।सब करूँगा सनम मैं तुम्हारे लिए।इस तरह न मुझे आजमाया करो।। भंग…
मैं फकीर वो बादशाह
मैं फकीर हूँ सामने तेरेतू जगत का बादशाह है। मैं फकीर वो बादशाह हैसिजदे में सिर झुका मेरा।सबकुछ तो तेरा ही दियाजो भी यहाँ सब कुछ तेरा।सब फकीर हैं तेरे सामनेतू जगत का बादशाह है। तेरी रहमतें बरसें सभी परखुशहाली दिखे हर कहीं।तू दूर कर दे गम सभी केउदासियाँ दिखें कहीं नहीं।तेरी कृपा मिल जाये…
नारी व्यथा
मेरे हिस्से की धूप तब खिली ना थीमैं भोर बेला से व्यवस्था में उलझी थीहर दिन सुनती एक जुमला जुरूरी सा‘कुछ करती क्यूं नहीं तुम’ कभी सब के लिए फुलके गर्म नरम की वेदी पर कसे जातेशीशु देखभाल को भी वक्त दिये जातेघर परिवार की सुख सुविधा सर्वोपरीहाट बाजार की भी जिम्मेदारी पूरी तंग आ…
होली में मचो है धमाल
होरी में मचो है धमाल कान्हा नगरी में, उड़ रयो देखो गुलाल, कान्हा नगरी में, मस्ती देखो ब्रज में छाए -2 गोपी-ग्वालवाल रंग लगाएँ -2 अंबर भी देखो भयो लाल कान्हा नगरी में, होली में मचो है धमाल ——— राधे श्याम के रंग में रंग जाओ -2 राधे-राधे मिल सब गाओ -2 बड़ो नटखट यशोदा…
रंगों का त्यौहार ‘ होली ‘
मंजु लता भारत त्यौहार और मेलों का देश है। वस्तुत: वर्ष के प्रत्येक दिन उत्सव मनाया जाता है। पूरे विश्व की तुलना में भारत में सबसे अधिक त्यौहार मनाए जाते हैं। इनमें से अधिकांश त्यौहार भारत के अधिकांश भागों में समान रूप से मनाए जाते हैं। प्रमुख त्यौहारों में होली भी बड़ा त्यौहार है…
स्त्री
स्त्री जब खुश होती है बर्तन माजते माजते कपड़े धोते-धोते रोटी बेलते बेलते सब्जी में छोका लगाते लगाते भी गुनगुनाती है कभी अकेले खामोश चारदीवारी में भी गुनगुनाती है सुबह से शाम तक चक्की की तरफ पिसते पिसते भी खुश होकर गुनगुनाती है वह बच्चों की भागमभाग बच्चों की फरमाइश और रिश्ते नाते निभाते निभाते…
खुराक (कहानी)
गर्मी की चिलचिलाती धूप में, खड़ी दोपहरी में चरवाहे किसी पेड़ के नीचे बैठ जाते ,अपनी अपनी पोटली खोलते खाना खाते तथा वहीं पास के किसी कुएँ या तालाब का पानी पीकर कुछ देर आराम करते थे।उनके आसपास ही पेड़ों की छाया में उनके गाय ,बछड़े, भैंस भी वहीं पास में आज्ञाकारी बच्चे की तरह…