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हमारा प्यारा हिन्दुस्तान

#bharat #hindustan #hindikavita #umakantbhardwaj जीवन पथ को सुगम बनाओ, वक्त गुजरता जाने दो।  मेहनत करो रात दिन मन से,तुम अभाव भर जाने दो॥  व्यस्त रखो स्वयं को तुम,वांछित अर्जित कर पाओगे।  गुजरा कब दुर्दिन वक्त,चाहकर भी नहीं जान पाओगे॥  आदर्श करो प्रस्तुत नव पीढ़ी,मार्ग यही अपनाने दो।  जीवन पथ को सुगम बनाओ,वक्त गुजरता जाने दो॥ …

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अंतरराष्ट्रीय हिंदी दिवस : गीतकार -अनिल भारद्वाज एडवोकेट

हिमालय के भाल पर सूरज सी जो दमके,वही मेरी राष्ट्रभाषा हिंदी भाषा है। सूर तुलसी ने सजाई काव्य गहनों से,है बहुत सुंदर ये अपनी और बहनों से,अजंता की मूर्ति सा जिसको तराशा है,वही मेरी मातृभाषा हिंदी भाषा है। गीत सा श्रृंगार और संगीत सा स्वर है,भाव मन के जहां बसते हिंदी वह घर है,हिंद के…

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राम आरती होने लगी है,

राम आरती होने लगी है,अवधनगरिया सजने लगी है।हो गया मन का काम,बोलो जय जय सीताराम।बोलो जय-जय राधे श्याम राम नाम की जीत हुई है,कोर्ट कचहरी खत्म हुई है।बाहर तंबू से घनश्याम,बोलो जय-जय सीतारामबोलो जय जय राधे श्याम। राज छोड बनवास गए थे,राक्षसों का नाश किए थे,रखते सबका ध्यान,बोलो जय-जय सीताराम,बोलो जय जय राधे श्याम। इस…

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जीवन का सार

गृहस्थी का दायित्व, कब अवसान देता है, गाड़ी-सा जीवन जिम्मेदारियों की सड़क पर, सरपट दौड़ता है, अहर्निश अविराम। स्व मनोरथ श्रम-भट्ठी में झोंकता है, स्वजनों के काम्यदान के लिए। तब प्रमोद-सरिता अविरल बहती है, परिजनों को भिगोती है अपने सुखदायी मेघपुष्प से। कर्तव्यों की वृत्ति अंततः जीर्ण बना देती है, पराश्रित बना देती है। बस…

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मोबाइल महिमा

विधा:-कुंडलियाॅं छंद मोबाइल लाया क्रांति, शुक्रिया खोज वाले। धन्य मूर्त रूप दाता, नेट जोड़़ने वाले॥ नेट जोड़़ने वाले, टीवी घडी़ कंप्यूटर। इसमें ही गैजेट, बुक टाॅर्च केलकुलेटर॥ कहें ‘लक्ष्य’समझाय, कलयुगी ज्ञान समाया। काग़ज़ कलम विहाय, क्रांति मोबाइल लाया॥ गूगल ज्ञान की पुतली, मोबाइल की शान। जानी अनजानी करे, समस्या समाधान॥ समस्या समाधान, निरख यूट्यूब उपदेश।…

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हिंदी वर्ण प्रकृति के संग

अमलतास खिला सुवर्ण सा आम बौर भर आये इमली की खटास ईख मिठास मन लुभाये उड़े परिंदे लहरा पंख ऊँचाई नील गगन छू आये ऋतु वसंत जीवन में उर्जा भर लाये | एकाग्रता से विद्याध्ययन एश्वर्यता राष्ट्र समृद्ध बनाये ओजस्वी मन सुसंस्कृति और सुज्ञान बढ़ाये अंशुमान क्षितिज पर अ: अवनि जगमगाये | कुमुदनी कनेर कंद…

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साईकिल

           इलाहाबाद का नैनी इलाका कभी बंजर जमीन था जहां उपज के नाम पर कुछ भी नहीं था लोग  सब्जी तथा फूलों का व्यवसाय करके अपना घर चलाते थे।उन‌ खाली जमीनों पर करीब सत्तर के दशक में कुछ पूंजीपतियों की नजर पड़ी और उन्होंने उसे खरीदकर उनपर अपनी-अपनी फैक्ट्रियां बनानी चालू कर दीं। इससे दो फायदा…

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मसखरे

मसखरे हो चले हों लोग जहाँ के मसखरेपन में ही हो जब सिंहासन और मजाक में ही उड़ा दी जाती हों जहाँ लोगों की समस्याएं दोनों तरफ से नहीं हो किसी को भी जन-पीड़ा से कोई सरोकार की जाती हों जब मीठी-मीठी बातें दोनों छोर से और पिटवाई जाती हों उन्हीं से तालियाँ और नचाया…

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सभ्य असभ्य इसी धरती पर।

डॉक्टर चंद्रसेन भारती सभ्य असभ्य इसी धरती पर। देव धनुज रहते आऐ। रावण से सब घृना करते  राम नाम सुन हर्साऐ। धरती से ही सोना उपजे, कोयला खान नजर आए। मंथन से कोलाहल निकला, अमृत वही नजर आए। संस्कार मिलते हे घर से, गली गलियारे मिलें नहीं। कागा धन ना हरे किसी का, कोयल किसको…

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    अग्नि नैया

कहानी (डोली शाह)        नीलिमा मेरी बचपन की बहुत अच्छी सहेली थी। आधा किलोमीटर की दूरी पर घर होने के कारण हमारा प्रायः एक बार मिलना हो ही जाता था । सौभाग्य से उसका विवाह भी मेरी ही कॉलोनी के  सीमेंट फैक्ट्री के मेनेजर से हो गया , जिससे दोनों की दोस्ती और भी घनिष्ठ…

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