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सचिन पायलट की ठंडी हुंकार

राजनीतिक सफरनामा : कुशलेन्द्र श्रीवास्तव सचिन पायलट ‘‘खोजी खबरदाता’’ के रूप् में उभर चुके हैं । सारे लोग उनके हर एक कदम को विशेष निगाहों से देखते हैं और हर शब्द का विश्लेषण कर अपनी नई सोच बनाकर परोस देते हैं । मीडिया को चाहिए ‘‘सबसे पहले’’ वाली न्यूज, इस के चक्कर में वे हर…

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खुशी का गीत

गजेन्द्र अधाना जी = वन गए नाना जी। किस्मत ने खोल दिया देखो खजाना जी।       खुशियों की मिली मिठास रे ओए बल्ले बल्ले।        देखो पूरी हो गई आस रे ओए बल्ले बल्ले आप सब को मुबारक हो = स्वस्थ सुंदर बालक हो। बालक वो प्रति पालक हो = देश का अच्छा नायक हो…

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खुशी का गीत

गजेन्द्र अधाना जी = वन गए नाना जी। किस्मत ने खोल दिया देखो खजाना जी।       खुशियों की मिली मिठास रे ओए बल्ले बल्ले।        देखो पूरी हो गई आस रे ओए बल्ले बल्ले आप सब को मुबारक हो = स्वस्थ सुंदर बालक हो। बालक वो प्रति पालक हो = देश का अच्छा नायक हो…

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गमन

दिनभर की परेशानी पराये लोग, पराया शहर अपरिचितों से हर समय घिरा मैं किसी अबोध बालक-सा तुम्हें ढूंढने का प्रयत्न नित्य ही करता हूं। तुम्हें प्रत्यक्ष देखने की चाह लिए जीना संभव है किंतु, यह कठिन कार्य हमसे हो सकेगा कब तक यह कहना व्यर्थ है। तुम्हें स्मरण कर आराम की अनुभूति होती है जाने…

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21जून अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर

23 सितंबर 2014 को संयुक्त राष्ट्र महासभा में श्री श्री रविशंकर जी के नेतृत्व में विश्व योग दिवस के रूप में,  संयुक्त राष्ट्र और यूनेस्को द्वारा घोषित करने के लिए हस्ताक्षर किए गए। इसलिए श्री श्री रविशंकर जी को योग का संस्थापक कहा जाता है। 21 जून 2015 को भारत के प्रधानमंत्री श्री मोदी जी…

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डॉक्टर सरोजिनी प्रीतम कहिन

आदर्श छात्र ने कहा-आचार्य महासमर के लिए आदर्श स्थिति कहो वे हंसकर बोले’- आखों पर पटटी-/                   बुद्धि पर पर्दा और सेनापति – धृतराष्ट्र हो ठाठ धोबी के कुत्‍तों के न तो – घर –घाट फिर भी – अलग ही ठाठ  नमक आमलेट खाने लगे … स्‍वाद बिगड़ गया पत्‍नी पर चिल्लाये … घर में नमक…

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लघुकथा – कर्मठ : डोली शाह 

बचपन  में ही राहुल को मां  छोडकर इस दुनिया से चली गयी तो  पिता ने घर के साथ  खेती-बाड़ी का काम  संभाल कर मा की कमी को पूरा करते हुए उसकी  परवरिश की । राहुल भी जब कुछ बडा हुआ तो वह भी पिता के हर कार्यों में हाथ बंटाता साथ मे पढने के लिए …

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देवेन्द्र पाठक ‘महरूम’ की ग़ज़लें

 एक धुँआते ही न रहो सुलगके जलो दहको जलाके ख़ाक करो हर सियासती छल को  घुन गये बांस- बत्ते, धसक रहीं दीवारें वक़्त रहते बचा लो टूटते- ढहते घर को  जो आहे- दीनो- बेकुसूर कहर बरपा दे  बचा न पाओगे अपने ग़ुरूर के घर को लहू भाई का सगे भाई के लहू से ज़ुदा दे…

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ख्वाबों में टहलती है

रह-रह के बुलाती है,तेरी याद अकेले में। इन पलकों की गलियों में , आवारा घूंमती है। ख्वाबों में टहलती है,तेरी याद अकेले में। पागल सी बनाती है, दीवानी बनाती है, मस्ताने गीत लिखती,तेरी याद अकेले में। जब आती है चुपके से, मुस्काती है धीरे से, सीने से लिपटती है,तेरी याद अकेले में। छूकर तुझे आती…

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जन भागिदारी के बिना पर्यावरण संरक्षण असंभव है

-लाल बिहारी लालनई दिल्ली । जब इस श्रृष्टि का निर्माण हुआ तो इसे संचालित करने के लिए जीवों एवं निर्जीवों का एक सामंजस्य स्थापित करने के लिए जीवों एवं निर्जीवों के बीच एक परस्पर संबंध का रुप प्रकृति ने दिया जो कलान्तर मे पर्यावरण कहलाया। जीवों के दैनिक जीवन को संचालित करने के लिए उष्मा…

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