वासंतिक दोहे
छे ऋतुओं का अंजनी,अपने यहां विधान। रहता है दो माह तक,वसंत ऋतु का मान।। माह चैत-बैशाख में,खुशी लाता वसंत। शोभा बढ़ता धरा की, चारो तरफ अनंत।। ऋतुओं के अनुरूप ही,बदलता खान-पान। भंवरे और तितलियां,करती हैं गुणगान।। चारो ओर सज जाते,वन-उपवन,घर-द्वार। बहती रहती हर तरफ,मस्त फगुआ बयार।। आता फूल में पराग, औ बाग में बहार। सुहाते…