हमने भारत को जितनी निकटता से देखा है , उसमें सिर्फ और सिर्फ दो ही मूल्यवान वस्तु दिखाई दी है वो है यहां की मिट्टी और समृद्ध लोकतंत्र किन्तु जबसे जातिवादी सोच और अहम ने जन्म लिया है, भारत का गौरवशाली इतिहास अंधेरे में डूबता जा रहा है । भारत के इसी मिट्टी से जुड़े है यहां के मेहनतकश किसान और जाबांज जवान , जिनके दम पर भारत के पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री जी ने जय जवान जय किसान का जोरदार नारा दिया था । आज देश का किसान खस्ताहाल जिंदगी जी रहा । उससे मनमानी विद्युत बिल , फसली बीज मूल्य इत्यादि वसूले जा रहे । छोटा किसान जो एक दो बीघे की खेती करके अपने परिवार का भरण पोषण करता था आज जब एक या दो हर्श पावर का मोटर बिठा कर सिंचाई का इंतजाम करे तो उसके ऊपर बिजली विभाग वाले विद्युत चोरी का मुकदमा लाद दे रहे । अगर वो इधर उधर से जुगत करके मेहनत से फसल ऊगा भी ले तो नीलगाय और छुट्टा पशु उन्हे खा जा रहे । आखिर कैसे जिएंगे ऐसे किसान और कैसे कम होगी महंगाई ? खेती किसानी की कवरेज को बहुत तब्बजो नहीं दिया जाता है । इसलिए कोई रिपोर्टर उसमें ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेता । खेती की खबरें और कवरेज केवल कृषि निदेशालय तक महदूद रहती है । तीन साल पहले जब मैं राजनीतिक और फिल्मी कवरेज से ऊब गया तब मैंने खुद आगे बढ़कर एग्रीकल्चर कवरेज की सोची , मैं पहली बार स्थानीय मंडी परिषद में गया । ये मेरे वाराणसी आवास के पास ही था । जब पहली बार किसान मंडी भवन में दाखिल हुआ तो लगा ये मै कहां आ गया हूं । पहली नजर में लगा ही नहीं किया इस दफ्तर का खेती किसानी से कोई लेना देना होगा । कोई किसान तो इस दफ्तर में घुसने की हिम्मत नहीं कर सकता था । तब मुझे पता चला कि लाखो रूपए की ये इमारते किसानों के पैसों से ही बनी है । उस पर भी मंडी अफसर के आला अफसर और मंत्रीजी की आलीशान कारों की खरीद और उसका खर्च भी किसानों के पैसे से चलता था । दरअसल सरकार किसानों के बेचे गए अनाज पर पहले कोई ढाई फीसदी मंडी टैक्स लेती थी । कायदे से इस पैसे का इस्तेमाल सरकार को मंड़ियों को बेहतर बनाने और गांवों में सम्पर्क मार्ग बनाने, इन सड़कों की मरम्मत और इन्हें गड्ढा मुक्त करने में खर्च करना चाहिए ,ताकि किसान आसानी से अपनी उपज लेकर मंडी तक पहुंच सके , लेकिन हर साल करोडो में आने वाले मंडी शुल्क का इस्तेमाल मंत्री और अफसर राजशाही पर खर्च करते है । है ना कितनी शर्मनाक बात । राज्य में चाहे किसी की सरकार हो ,लेकिन कागजों पर गांव की सड़कें गड्ढामुक्त होती रहीं है जबकि मेरे गांव में तो एक भी पक्की सड़क तक नहीं । न कोई उन्हें देखने वाला न जांच करने वाला । किसानी कच्चा काम है इसलिए इसका आडिट भी नहीं होता है । मंडी परिषद के कुछ गिने चुने ठेकेदार, नेता और अफसरों से मिलकर पैसे बनाने में लगे रहते है । इसके इलावा भी हजार तरीके हैं यहां पैसा कमाने के । देखते देखते मंडी परिषद सबसे कमाऊ विभाग बनता गया । आज इससे कभी न कभी जुड़ा हर नेता और अफसर करोड़पति बन गया है । न भरोसा हो तो सभी विभाग के बाबुओं के संपत्ति की जांच करावा के देख लीजिए । अब जब से नया कानून कृषि संशोधन विधेयक आया है मंडी से जुड़े अफसर कर्मचारियों के होश उड़े हुए हैं । यूपी के किसानों को न पहले ज्यादा मतलब था मंड़ियों से न अब रहेगा । मंडी रहे या चूल्हे में जाए, लेकिन पंजाब और हरियाणा में ऐसा नहीं है । किसानों को साहूकारों और दलालों से बचाने के लिए रोहतक के सर छोटू राम ने आजादी से पहले ही यहां देश में पहली मंडी की स्थापना की थी या यूं समझ लीजिए खुद किसान रहे छोटू राम पंजाब-हरियाण के अन्ना हजारे थे । आज भी उनका नाम वहां के किसान सम्मान से लेते है । उनके कारण जो मंडी कानून बना वह पंजाब हरियाणा के किसानों की ताकत बन गया और वहां की अर्थव्यवस्था की धुरी भी ,मंडी की वजह से कि वहां के किसान शुरू से ही धन सम्पन्न हैं । अब उन्हें लग रहा है कि ये मंडियां खत्म हो जाएंगी तो वे एक बार फिर बड़े साहूकारों के चंगुल में फंस जाएंगे । इसीलिए इन बिलों का वहां सबसे ज्यादा विरोध हो रहा है ।तो कहने का मतलब चीजें इतनी आसान भी नहीं जितनी की ऊपर से दिखती हैं । इन विवादित बिलों के प्रभावों को बड़े परिपेक्ष्य में देखने और समझने की जरूरत है । सतही तौर पर अगर आप कोई नतीजा निकालेंगे तो बाद में बहुत पछताएंगे , क्योंकि आप किसान भले न हों एक उपभोक्ता हैं और उससे भी पहले आप इस देश के प्रबुद्ध नागरिक हैं । ये हमेशा याद रखिएगा नेता कोई संत-महात्मा हो या ईश्वर का भेजा गया कोई देवदूत ।आखिर में वह नेता ही होता है जो सिर्फ अवसर ढूंढता है और खुद को स्थापित करता है । आपके हाथ पैर तुड़वाकर खुद को सर्वोच्च बनाता है । ___ पंकज कुमार मिश्रा (सह – संपादक , पत्रकार एवं शिक्षक, केराकत जौनपुर 8808113709)
Trending News