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मोदी सरकार के कुछ अनसुलझे कदम !

हाल ही मे एन आर सी एक ऐसा मुद्दा रहा जिस पर ओवैसी और बदरुद्दीन अजमल जैसे दंगापसन्द  लोगो को बोलने का मौका मिल गया । एन आर सी जैसे कदम वाकई उचित और देशहित मे है । ये हर राज्य मे लागू होना ही चाहिए । किन्तु ऐसे अन्य कई फैसले जो मोदी सरकार ने बिना किसी फुलप्रूफ प्लान के लिए वो गलत साबित हुआ या फिर प्रतिकूल रहा , जैसे नोटबन्दी नए ट्राफिक नियम , जी एस टी और निजीकरण । लगभग यह तय है कि मोदी नवम्बर के पहले हफ्ते में बैंकाक में आर सी इ पी मुक्त व्यापार समझौते पर साइन करने जा रहे हैं ।पहले नोटबन्दी फिर जी एस टी और अब यह आर सी ए पी ।यह तीनों निर्णय देश के व्यापार उद्योग के लिए घातक साबित हुए  ।नोटबन्दी की थोड़ी जल्दबाजी और अतार्किक ढंग से लागू की हुई GST का प्रभाव इस दीवाली पर बिल्कुल स्पष्ट दिखाई दी । मंदी से जूझ रहे व्यापारियों की दीवाली काली हो गयी है । अगर यह आर सी इ पी समझौता हो जाता है तो चीन और अन्य देश अपने सस्ते सामान से बाजार को पाट देंगे और देश के छोटे उद्योग धन्धो की कमर टूट जाएगी । दुनिया का यह सबसे बड़ा व्यापारिक समझौता होने जा रहा है सूत्र बता रहे हैं कि मोदी सरकार सभी मुद्दों पर सहमति जता चुकी है, पेंच सिर्फ डाटा लोकलाइजेशन पर फंसा हुआ है, जिससे रिलायंस सहमत नही हो पा रहा है। सबसे ग़लत बात तो यह है कि आरसीईपी और मुक्त व्यापार समझौते के तहत क्या होने जा रहा है? इसके क्या लाभ है? और क्या हानि है ? इस पर सार्वजनिक बहस होनी चाहिए थी लेकिन मोदी सरकार इस समझौते के मसौदे को गुप्त रख रही है । देश की जनता को पता ही नही है कि मोदी सरकार  पीढियों को गुलाम बनाने के समझौते पर हस्ताक्षर कर रही है आखिरी मुक्त व्यापार समझौता हमने श्रीलंका से सन 2000 में किया था लेकिन पिछले दो दशक तक हमने ऐसा कोई समझौता नहीं किया है अब तक सभी मुक्त व्यापार समझौतों में भारत सालाना 105 अरब अमेरिकी डॉलर मूल्य का व्यापार घाटा झेल रहा है । आरसीईपी दक्षिण पूर्व एशियाई देशों (आसियान) के 10 सदस्य देश (ब्रुनेई, कंबोडिया, इंडोनेशिया, मलेशिया, म्यांमा, सिंगापुर, थाइलैंड, फिलिपीन, लाओस तथा वियतनाम) तथा उनके छह मुक्त व्यापार साझेदार देश भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, आस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड के बीच होने वाला वृहद मुक्त व्यापार समझौता है। इन 16 देशों के साथ होने वाले व्यापार में भारत 11 देशों के साथ व्यापार घाटे की स्थिति में है ।. मतलब भारत इन देशों से जितना सामान खरीदता है उससे कहीं कम उन्हें बेचता है. इनमें सबसे बड़ा व्यापार घाटा चीन के साथ है ।2014-15 में  मोदी की सरकार के सत्ता में आने पर भारत का चीन के साथ व्यापार घाटा लगातार बढ़ता जा रहा है भारत की निर्यात विकास दर 2019 के पहले आठ महीनों में 11.8 प्रतिशत से घटकर 1.4 प्रतिशत पर आ गई है. अगर ये गिरावट जारी रही तो भारत का व्यापार घाटा और बढ़ेगा क्योंकि भारत दूसरे देशों को निर्यात करने से ज्यादा खुद आयात करेगा ।पिछले साल भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा चीन के सबसे बड़े बैंक ऑफ चाइना को लाइसेंस जारी कर दिया गया है और इसी महीने चीन के राष्ट्रपति के साथ मोदी अपनी मुलाकात में RCEP के मुद्दे पर अंदरखाने में अपनी सहमति दे चुके हैं। चीन भारत के बाजार पर पूरी तरह से छाने की तैयारी कर चुका है,  नोटबंदी के बार सरकार की आर्थिक स्थिति चरमराने लगी थी । इसे छिपाने के लिए बजट में घोषित पैसा नहीं दिया गया और निगम से कहा गया होगा कि एन एस एस एफ या कहीं से लोन लेकर भरपाई करें. अब निगम पर तीन लाख करोड़ से अधिक का बकाया हो गया है. जिसमें दो लाख 40 हज़ार करोड़ का सिर्फ लोन है । क्या इसका असर किसानों पर पड़ेगा? जो सरकार अपने परफार्मेंस का दावा करती है उसकी एक बड़ी संस्था का यह हाल है. जल्द ही विपक्ष पर सारा दोष मढ़ दिया जाएगा ।  बिजनेस स्टैंडर्ड में छपी ये विश्लेषण वाकई हैरान कर दे रही की कार्पोरेट टैक्स घटा तो अख़बारों और चैनलों में गुणगान खूब छपा । उसके कुछ दिनों बाद एक-एक कर इसके बेअसर होने की ख़बरें आने लगीं । बताया जाने लगा कि इससे निवेश में कोई वृद्धि नहीं होगी ।. उन खबरों पर ज़ोरदार चर्चा नहीं हुई और न ही मंत्री या सरकार उसका ज़िक्र करते हैं. सेंसेक्स में जो उछाल आया था उसका नया विश्लेषण बिजनेस स्टैंडर्ड में आया है कि बॉम्बे स्टाक एक्सचेंज की 501 कंपनियों में से 254 कंपनियों के शेयरों को नुकसान हुआ है ।19 सितंबर को कार्पोरेट टैक्स हुआ था । उसके बाद शेयरों के उछाल का अध्ययन बताता है कि सिर्फ दो कंपनियों के कारण बाज़ार में उछाल आया. एचडीएफसी बैंक और रिलायंस. सबसे अधिक रिलायंस को 20.6 प्रतिशत का फायदा हुआ. उसके बाद एचडीएफसी बैंक को 11.8 प्रतिशत , बाकी भारतीय स्टेट बैंक, पीरामल, जी एंटरटेनमेंट, टाटा कंसल्टेंसी, इंडिया बुल्स, एनटीपीसी और कोल इंडिया को झटका लगा । यह विश्लेषण बताना चाहता है कि भारत के निवेशकों के पास पैसे नहीं हैं जो बाज़ार में निवेश कर सकें ।

बिजनेस स्टैंडर्ड में एक और रिपोर्ट छपी है कि मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की 90 प्रतिशत कंपनियों को कार्पोरेट टैक्स में कटौती से कोई लाभ नहीं होगा ।. यह सेक्टर नहीं सुधरेगा तो रोज़गार में वृद्धि नहीं होगी ।. आम तौर पर लोग छोटे से शुरू करते हैं, जिसके मालिक खुद होते हैं । बाद में उसे कंपनी में बदलते हैं जब बिजनेस बड़ा होता है. इस सेक्टर के ऐसे मालिकों को टैक्स कटौती से कोई लाभ नहीं. उन्हें अभी भी 42.74 प्रतिशत टैक्स देने होंगे। सिर्फ जो नई कंपनी बना रहा है उसे 17.16 प्रतिशत टैक्स देने होंगे. ज़्यादातर को 29.12 प्रतिशत से लेकर 42.74 प्रतिशत टैक्स देने होंगे ।सात अक्तूबर को इंडियन एक्सप्रेस की ख़बर देखते हुए लगा कि हालात अभी और बुरे होंगे. दीवाली की बिक्री को दिखाकर हल्ला हंगामा होगा लेकिन वापस उसी तरह ढलान पर आना है । जॉर्ज मैथ्यू की यह खबर बताती है कि कामर्शियल सेक्टर में पैसे का प्रवाह 88 प्रतिशत घट गया है. सोचिए जब पैसा ही नहीं होगा जो निवेश का चक्र कैसे घूमेगा. रोजगार कैसे मिलेगा ।. यह आंकड़ा भारतीय रिजर्व बैंक का है ।. इस साल अप्रैल से सितंबर के मध्य तक बैंकों और गैर बैंकों से कामर्शियल सेक्टर में लोन का प्रवाह 90,995 करोड़ ही रहा है. पिछले साल इसी दौरान 7,36,087 करोड़ था । । साढ़े पांच साल की घोर आर्थिक असफलता के बाद भी राजनीतिक सफलता शानदार है ।

—— पंकज कुमार मिश्रा जौनपुरी 8808113709

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