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है याद मुझे माँ (कविता-10)

याद नहीं कब मैंने माँ तुझ में ली अंगड़ाई थी
जीवन जीने हेतु तन से तेरे मीठी अमृत पाई थी
तूने ही मेरे हाथों में सबसे पहले कलम थमाई थी
है याद मुझे माँ ऊँगली थामे स्कूल छोड़ने आई थी

सबसे प्रिय वो लाल साड़ी जो तूने स्वयं सजाई थी
जिद कर मैंने तुझसे उसकी अपनी फ्रॉक बनवाई थी
जिसे पहन मैं ठुमक ठुमक सखियों बीच इतराई थी
है याद मुझे माँ खुश हो तू भी मन ही मन हरसाई थी

बी ए पास हुई मैं तू खुश इतनी जैसे तूने डिग्री पाई थी
मिली नौकरी मुझे जिस दिन तू गर्व से फूली नहीं समाई थी
ख़ुशी के आंसू भर आँखों में घर घर बाँटी तूने मिठाई थी
है याद मुझे माँ उस दिन तेरी मेहनत सतरंगी रंग लाई थी

सजी थी डोली बजी शहनाई घर भर में रौनक छाई थी
हँसते हुआ चहरे था तेरा मगर आँखों में उदासी छाई थी
बता मुझे गलती मेरी माँ क्यों बेटी मैं तेरी पराई थी
है याद मुझे माँ आलिंगन वो तेरा जब मेरी हुई बिदाई थी
है याद मुझे माँ, सब याद मुझे माँ, हाँ याद मेरी माँ

                 पद्मा

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