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बाबुल (कविता-3)

”कभी अभिमान तो कभी स्वाभिमान है पिता

बड़ी ही हसरतों से, बड़ी ही हसरतों से …
पाला पोसा बड़ा किया,
उच्च शिक्षा दिला, आत्मनिर्भर बनाया
संस्कार, तहजीव, सभ्यता
सब सिखाया मुझे,
किन्तु किन्तु ….
अधिकार के लिए, सम्मान के लिए ….
बोलना न सिखाया मुझे
बड़ी ही हसरतों… पाला पोसा बड़ा किया…
आज बहुत ही, आज बहुत ही,
असमंजस में हूँ
किससे, किससे क्या कहूँ…
पता नहीं मुझे…
मन:स्तिथि ऐसी है कि अव,
न ही कह सकती हूँ
न चुप रह सकती हूँ
इतनी ही शिकायत है कि ,
अधिकारों के लिए, सम्मान के लिए
बोलना भी सिखा देते मुझे
बड़ी ही हसरतों….पाला पोसा बढ़ा किया ….
—-रश्मि श्रीधर

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