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ग्यारह को किसकी होगी पौह–बारह

मनमोहन शर्मा ‘शरण’ (संपादक)

सभी देशवासियों को बसंत पंचमी की बधाई एवं इस अवसर पर माँ सरस्वती से विशेष विनती है कि अज्ञानता को दूर कर ज्ञान का प्रकाश चहुँ ओर कर दें जिससे सबको सच्ची बात भली प्रकार समझ में आ जाए । यहाँ थोड़ा मैं भी नासमझ सा हो गया हूं कि यदि कक्षा का अध्यापक एक विषय को भली प्रकार बार बार समझाता है और बच्चे उसे समझ नहीं पा रहे यह उनकी गलती है या पढ़ा लिखा योग्य शिक्षक उन्हें समझा नहीं पा रहा है, उनकी । यदि बात कुछ भी नहीं है तो फिर बवाल क्यों है ?
दिल्ली में चुनाव सिर पर हैं, असली मुद्दे कहाँ गये कौन जाने, जब भी पूछो क्या चल रहा है, सामने से एक ही उत्तर एनआरसी, सीएए–––– और कुछ नहीं । ठीक उसी तरह जैसे परफ्यूम के विज्ञापन में दुकानदार कहता है ।
जब बात राम मंदिर की आ फँसी थी तब बड़े–बड़े धर्माचार्य अध्यात्म्वेत्ताओं ने भी बीच–बचाव या कहें समझाने की कोशिश की थी । श्रीश्री रविशंकर जी को तो विशेष तौर पर कई बार मध्यस्थता हेतु कहा गया ।
देश में संविधान के, कानून के, बड़े–बड़े जानकर बैठे हैं । सरकार की ओर से क्या ठीक है, क्या गलत ठीक से समझाया नहीं जा रहा या लोग समझना नहीं चाह रहे µ सारा पेच इसी के बीच में है ।
दिल्ली की बात करें तो ‘आम आदमी पार्टी’ के ‘फ्री’ वाले फण्डे को विपक्षियों ने दुतकारा, लेकिन भाजपा या अन्य पार्टियों ने अपना संकल्प पत्र् या घोषणा पत्र् प्रसारित किया तो ज्ञात हुआ कि विधि अलग–अलग किन्तु उद्देश्य सबका एक है कि जनता को लोपलुभावन वायदों की झड़ी लगा देना । लेकिन अच्छी बात यह है दिल्ली का स्मार्ट वोटर अधिक सजग है अपना मत बुद्धिमता से डालता है । ‘हाथ कंगन को आरसी क्या और पढ़े लिखे को फारसी क्या’––– ग्यारह को किसकी होगी पौह–बारह––––– पता चल ही जाएगा ।

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