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नारी (कविता-2)

माना एक

नारी की जिंदगी

उसकी कब होती है

पर उसे भी

अधिकार है

अपने मन से

जिंदगी जीने का

खिलखिलाने का

गुनगुनाने का,

पर ये अधिकार

उसे स्वयं लेना होगा

देना सीखा है

लेना भी सीखना होगा

कर्तव्य के साथ

सचेत होकर

आगे बढ़ कर

अपना अधिकार लेना होगा,

इससे नहीं बदलेगा

उसका बेटी/ बहन

पत्नी/बहू/ माँ

और उससे बढ़ कर

उसका नारी होना,

बदलेगा तो केवल इतना

आत्मसंतोष से भरी

वह और भी अधिक

सुंदर हो जायेगी,

बने/ बनाये घेरे से निकल

एक सुंदर दुनिया को

और अधिक सुंदर बनायेगी।

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डा० भारती वर्मा बौड़ाई

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