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है विजयी जो साँसारिक चुनौतियों से हारा नहीं कौन है जिस हृदय में मन्दिर और गुरुद्वारा नहीं

प्रकृति ने सँपूर्ण सृष्टि को समान रूप से अपने तत्व देकर गढ़ा है। अब ये तो मानव जाति पर निर्भर करता है कि वो किस परिस्थिति में किस तत्व की प्रधानता का वरण करे।

चाहे माँ दुर्गा की आराधना हो, चाहे विजयादशमी का अवसर हो, प्रत्येक साँसारिक उत्सव एक ही आध्यात्मिक प्रतीक की ओर इशारा करता है, वो इशारा है बुराई पर

अच्छाई की विजय।

अब विजयी होने के भी अपने पैमाने हैं। अँग्रेज़ी शासन काल में, हर विरोधी स्थिति में, अहिंसा के रास्ते पर चल कर, राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने, न सिर्फ अँग्रेज़ी हुकूमत पर इस बात का प्रभाव छोड़ा कि किसी भी युद्ध को बुद्ध बन कर जीता जा सकता है, बल्कि सारे सँसार को अहिंसा का पाठ भी पढ़ाया।

चुनौतियाँ तो हर काल में हर समाज में हर व्यक्ति के जीवन में आती रही हैं और आती ही रहेंगी। लेकिन चिंतन का विषय ये है कि मानव जाति उन चुनौतियों का सामना किस प्रकार करती है।

निम्न दृष्टिकोण वाला सामाजिक वर्ग, प्रत्येक परिस्थिति को नज़रअँदाज़ करते हुए, उस स्थिति की ज़िम्मेदारी से बचने के लिए, हर स्थिति का दोषारोपण, दूसरों पर डाल कर, अपनी जान छुड़ा लेता है।

मध्यम दृष्टिकोण वाला सामाजिक वर्ग, हर स्थिति का मानसिक अवलोकन करके, स्वँय को ही प्रत्येक स्थिति का दोषी मानने लगता है।

ये दोनों ही वर्ग, स्वस्थ सामाज के निर्माण में बाधक होते हैं।

निम्न दृष्टिकोण वाला वर्ग परस्पर दोषारोपण के कारण अलगाववाद को जन्म देता है।

और मध्यम दृष्टिकोण वाला वर्ग मानसिक अवसाद से परिपूर्ण जमात का निर्माण करता है।

दोनों ही स्थितियाँ राष्ट्र की उन्नति में बाधक हैं।

उत्तम कोटि का दृष्टिकोण माना जाता है, रब की रज़ा में मज़ा लेने वाला।इस श्रेणी में आने वाला वर्ग अपने धैर्य और आत्मविश्वास के बल पर समस्त चुनौतियों को स्वीकार करता है, और हर पल आनँद में मगन रहता है।

ईश्वर जो करता है अच्छे के लिए करता है, ये दृष्टिकोण रखने वाला समाज कभी हिंसक हो ही नहीं सकता, क्यूँकि सब में रब को देख पाने वाले व्यक्ति, कभी रब के किसी बँदे को, किसी भी स्थिति, में कोई भी दुख देने की भावना रख ही नहीं सकते।

तो क्यूँ न अपने अनमोल मानव जन्म को सार्थकता की दिशा में चला कर, एक स्वस्थ समाज के निर्माण में अपना उत्कृष्ट योगदान दिया जाए।

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चलो चुन लें हर राह से ख़ार

बन कर प्रीत की हम पतवार

उदासी को हर दिल से भगा दें

चँद दीपक उम्मीद के जला दें

फैलाएँ हर सू वात्सल्य घनेरा

दूर कर दें हर हृदय का अँधेरा

अहिंसा का अब लाएँ मज़हब

इश्क इबादत का सीखें अदब

मिटे काम क्रोध लोभ अहँकार

हो हर मौसम सावन की बहार

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ईश्वर की अराधना तो केवल प्राणी मात्र की सेवा में सर्वस्व समर्पण की साधना है।आइए अपने आध्यात्मिक दृष्टिकोण से एक बेहतर समाज के नव निर्माण की दिशा में कदम बढ़ाएँ।

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अहिंसा हो परम धर्म अपना

निस्वार्थ प्रेम का देखें सपना

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