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जलजला आता है निशां छोड़ जाता है (सम्पादकीय)

मनमोहन शर्मा ‘शरण’ (प्रधान संपादक)

बहुत दिनों के बाद फिर से सुनने को मिला है कि ‘कोरोना’ संक्रमण की गति धीमी  हुई है और संक्रमितों की संख्या में काफी कमी देखी गई है । प्रतिदिन लाखों में संक्रमितों की संख्या अब 50–60 हजार के आसपास आ रही है ।

किन्तु फिर एक बार हम सबको मनन/चिंतन करना चाहिए — “अभी समाप्त नहीं हुआ है” अभी हमें कोरोना की सभी गाईडलाइन्स का पालन करना है ।

          यह सच ही है कि चाहे समुद्री तूफान, भूकम्प, महामारी  अथवा कोई अन्य गंभीर समस्या हो–जाते–जाते ऐसे निशां छोड़ जाते हैं जिनमें से कुछ की भरपाई तो समय कर देता है परन्तु कुछ ऐसे अभाव हो जाते हैं जिनके दु%ख की भरपाई नहीं की जा सकती । कोरोना की दूसरी लहर में क्या घटित हुआ, यह सर्वविदित है –चहुँ ओर चीत्कार, कालाबाजारी आदि आदि–––– ।

          जब सब कुछ सामान्य होने लगेगा तब बहुत कुछ हमारे सामने आएगा कि काश! यह न किया होता या ऐसा करने से समीकरण बदल सकते थे, किन्तु वह सब मंथन / तथ्य भविष्य में पुनरावृत्ति न हो इसके लिए मददगार हो सकता है । लेकिन जो हो गया जिन परिवारों में जन हानि हुई है वह भरपाई कभी नहीं हो सकती, कहीं पिता, कहीं पुत्र्, कहीं भ्रात, कहीं मातृ शोक हुआ । वे सब हालात  के सामने बेबस और लाचार हैं ।  मानों अब आँसुओं ने ही दामन थाम लिया है उनका ।

          अब मैं सरकारी तन्त्र् का ध्यान  चाहूँगा — जिन परिवारों में जन हानि हुई उनके लिए तरह–तरह की घोषणाएँ हुर्इं — 10 लाख/ 4 लाख आदि–आदि । किन्तु प्रश्न यह है कि ऐसी गाईडलाइन्स / प्रपत्र् कहीं जारी नहीं किया गया जिससे यह पता चलता हो कि यह सांत्वना राशि कहां से किस प्रकार आवेदन करें । स्पष्ट है, बातों से बात नहीं बनेगी साहब ।

          प्रत्येक क्षेत्र् में कुछ ऐसे काउंटर बनें जो आवेदन करने में मददगार साबित हों अन्यथा जिस प्रकार कुछ राजनैतिक पार्टियां हाउसटैक्स आदि भरने के लिए शिविर लगवाते हैं इसी प्रकार इतनी बड़ी आपदा में कोई आगे क्यों नहीं आ रहा ।  इसीलिए लिखने वालों ने लिख दिया —हाथी के दांत खाने के कुछ और दिखाने के कुछ और होते हैं––––

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