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राजनीति और ज़मीर : राजकुमार अरोड़ा गाइड

बड़ा ही विरोधाभास है इन दोनों में आजकल, राजनीति में सफल होना है तो ज़मीर को ताक

पर रख कर ही सम्भव है। येन,केन,प्रकारेण बस सत्ता पाना ही लक्ष्य हो तो नैतिकता की जरूरत

नहीं,अनैतिक होना ही होगा। भाजपा कश्मीर से कन्याकुमारी तक,कच्छ से आसाम तक पूरे

राष्ट्र में हर हालत में स्वयँ को देखना चाहती है चाहे इसके लिये स्थापित परम्पराओं को भुला लोकतंत्र

की हत्या जैसे कृत्य ही क्यों न करना पड़े। कॉंग्रेस मुक्त भारत  का नारा देने वाली भाजपा आज

कांग्रेसियों को अपने  दल में ले कर खुद कांग्रेसमय  होती जा रही है।

नैतिकता की धज्जियाँ उड़ती पहले महाराष्ट्र में देखीं, फिर,कर्नाटक,मध्यप्रदेश में! राजस्थान में तब बात

नहीं बनी पर अब तक अंदरखाने अभी भी प्रयास जारी है!अभी तीन माह पूर्व  प० बंगाल व असम की

चुनावी रैलियों में पक्ष विपक्ष दोनों द्वारा मर्यादाहीनता की चरम सीमा को देखा है।अपने को पार्टी विद ए

डिफरेंस  कहने वाली,वंशवाद की प्रखर आलोचक  भाजपा के मुख्यमंत्री अपने  पद को छोड़ने के एवज

 में अपने एक बेटे के लिये केंद्र में, दूसरे के लिये राज्य  में मंत्री पद चाहते थे।पंजाब कॉंग्रेस में कलह व सुलह का झमेला पिछले  डेढ़ माह से मनोरंजक धारावाहिक जैसा बना है,कुछ पटाक्षेप हुआ पर तकरार बरकरार है!

चुनाव के समय जिसको जेल भेजने की हुंकार भरी हो, उसी के साथ सरकार बना लेते हैं। महात्मा गांधी तो एक पुतला है, जिनके आदर्श  के नाम पर चुनाव जीतते हैं, बाद में उन्हीं केआदर्शों की धज्जियां उड़ा देते हैं। जिस जे जे पी को जमानत ज़ब्त पार्टी कहा था उसी के साथ  हरियाणा में भाजपा ने सरकार बनाई, ऐसा ही बिहार में  राजद को आधे राजपाट में छोड़ नीतीश ने भाजपा के  साथ सरकार बनाई!

 लोकतंत्र की जीत या हत्या अपनी सुविधानुसार घड़े शब्द बन जाते हैं। मतदाता बेचारा सब कुछ देखते हुए भी सब कुछ सहने को मजबूर हैं।आज देश की जनता एक ऐसे चौराहे पर खड़ी है,उसे रस्ता नहीं सूझ रहा,किस पर और कैसे विश्वास किया जाये। अब दो माह पहले ही कोरोना की दूसरी लहर में स्वास्थ्य सेवाओं को सही ढंग से न सम्भाल पाने के कारण प्रचंड बहुमत की सरकार को बेबस होते  व  लाखों को  मौत के मुहँ में जाते देखा है।ऑक्सीजन की कमी व उससे हुई मौतों को ले कर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई,अब राज्यों की रिपोर्ट को आधार बना एक ही झटके में कह दिया ऑक्सीजन की कमी नहीं हुई,बाद में बहुत ज्यादा किरकिरी हुई तो एक नया कॉलम जोड़ राज्यों को दोबारा रिपोर्ट भेजने को कहा। वास्तव में सरकार के निरीह बेबस जनता एक जीवित प्राणी नहीं सिर्फ एक आंकड़ा है,नम्बर हैं बस। इससे अधिक कुछ नहीं! रेप व बाद में हत्या को ले कर,राजनीति का दौर चल पड़ता है,दलित,मुस्लिम एंगल से तो उसे और पुरजोर तरीके से भुनाने की कुत्सित व घिनौनी शुरुआत हो जाती है।

 जिन किसानों की आय दुगनी करने का दावा किया था वही  आठ माह से भी अधिक समय हो गया,अपने लिये ही बनाये कृषि कानूनों को हटाने की मांग करते  सत्ताधारियों के दिल्ली दरवाजे पर गुहार लगा रहे हैं।22 जनवरी तक हुई 11

दौर की बात के बाद तो अभी तो फिर बात भी नहीं हुई हैं! चुनाव अब तीन साल दूर है इसलिये ही तो सरकार मस्त है जनता त्रस्त। जब चुनाव नजदीक आयेंगे तो जुमलों का पिटारा भी खुलेगा और मनमोहन घोषणाएं भी होंगी। चुनाव जीतने के बाद उन्हें पूरा करना कोई संविधान में थोड़े ही

लिखा है।

ज़मीर रूपी रीढ़ की हड्डी के बिना राजनीति लुँज पुँज हो चुकी है। बिना जमीर के ही अमीर बनने की फिराक में ये सत्तालोलुपता देश को न जाने कहाँ ले जाएगी,इनसे नैतिकता या मर्यादा की आशा मृगतृष्णा से बढ़ कर कुछ नहीं!

-राजकुमार अरोड़ा गाइड

सेक्टर 2,बहादुरगढ़(हरि०)

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