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कहानी ; तीसरा बेटा

प्रभुदयाल खट्टर

जिस मकान में दीनानाथ जी रहते थे वह मकान उनके अपने नाम था। जिसमें दीनानाथ जी अपनी पत्नी के साथ अकेले रहते थे। हालांकि उनके दो बेटे भी थे मगर दोनों मकान अपना नाम कराने के झगड़े के चलते अपनी अपनी पत्नी को लेकर अलग रहने चले गए थे। यह बात जब दीनानाथ जी के अभिन्न मित्र हरि मोहन जी को पता लगी तो उन्हें चिंता हुई।वह तुरंत दीनानाथ जी से मिले और उन्हें समझाते हुए कहा” दीनानाथ मैंने सुना है तुमने दोनों लड़कों को घर से निकाल दिया?”

” मैंने नहीं निकाला बल्कि वे दोनों अपनी बेवकूफी से घर छोड़ कर चले गए।” दीनानाथ जी ने हरिमोहन जी को उत्तर देते हुए कहा तो हरिमोहन उन्हें समझाते हुए बोले “ठीक है वो तो बच्चे हैं लेकिन तुम्हें तो चाहिए था उन्हें समझाते ।

दीनानाथ जी ने हरिमोहन की बात सुनी ‘तो उनकी आँखों आंसू आ गए ” चार महीने पहले जब मैं गुसलखाने में पैर फिसलने से गिर पड़ा था जिससे मेरी एक टांग में लकवा मार गया,लाचारी की हालत में मुझे अपनी कपड़ों की दुकान बंद करनी पड़ी,असहाय होकर घर बैठना पड़ा. मेरी हालत देख रहे हो, बिना सहारे के खड़ा भी नहीं हो पाता ,तब मैंने क्या क्या कोशिशें नहीं की उन्हें रोकने की ,उन्हें समझाने की ? लेकिन वो अड़े रहे कि पहले मैं
ये मकान उनके नाम करूँ, तभी वो यहाँ रहेंगे। ” हरिमोहन दीनानाथ जी की सुनकर कुछ बोलना चाहते थे लेकिन इससे पहले दीनानाथ जी क्षुब्ध होकर बोले : तुम क्या समझते हो हरी मैं उनके चले जाने से खुश हूं। नहीं मैंने उन्हें पाल पोस कर इसलिए बड़ा नहीं किया था कि एक दिन वह मुझे लाचार हालत में अकेला छोड़कर चले जाएँ? “

” हां यही बात तो मैं कह रहा हूं। अब तुम्हारी जिंदगी कैसे कटेगी? इस बुढ़ापे में पैसे पैसे के लिए आदमी को बेटो का मुंह देखना पड़ता है। मैं तो यही कहूंगा तुम उन दोनों को फिर से बुला लो और मकान उनके नाम कर दो। “हरिमोहन बोले तो दीनानाथ जी थोड़ा उतेज्जित होते हुए बोले “अभी तो मैं जिंदा हूं , मकान कैसे उनके नाम कर दूँ? “

” अरे , तेरे दो ही तो बच्चे हैं ,और फिर तुम्हारे बाद,तुम्हारी प्रॉपर्टी उनके नाम ही तो होगी। “हरिमोहन जी की बात सुनकर दीना नाथ बोले ” अरे ये बात तो मैंने खुद अपने दोनों लड़कों को समझाई थी ,लेकिन दोनों कहने लगे कि ,अभी करो बटवारा ,नहीं तो हम घर छोड़ कर जा रहें हैं। “

”देखो दीना ,बच्चे तो नासमझ है, इसलिए उन्होंने गलती की,घर छोड़ने की। ” हरीमोहन जी ने दीनानाथ को फिर से समझाते हुए बोले ” लेकिन इस बुढ़ापे में देखभाल के लिए, और तो और खरचे पानी के लिए बच्चों का तो मोहताज होना पड़ता है। “हरिमोहन जी बोले तो दुखी दुखी स्वर में दीनानाथ जी ने कहा ” हरी ,अच्छी बात ये है कि मेरी पत्नी अभी मेरे साथ है ,देखभाल के लिए ,रही खर्चे पानी की बात ,तो जब से दोनों ने कमाना शुरू किया है एक फूटी कौड़ी भी नहीं दी आज तक मुझे। “

“लेकिन पहले तुम भी कमा रहे थे ,लेकिन अब तो तुम भी बेरोजगार हो गए हो। लाचार हो। खर्चे पानी के लिए एक तरह से तुम अब आश्रित हो अपने दोनों बेटों पर। “हरिमोहन जी की बात सुनकर दीनानाथ जी हिकारत भरे स्वर में बोले ” हरि, नहीं चाहिए कोई खर्चा पानी उनसे ,मुझे खर्चे पानी के लिए अपने दोनों बेटों केआगे
हाथ नहीं फैलाना। “

"अरे दोनों बेटों के आगे हाथ नहीं  फैलाओगे तो कौन देगा तुम्हेँ  खर्चे पानी  के लिए पैसे?" हरिमोहन ने हैरत से पूछा तो दीनानाथ बोले " खरचे पानी के पैसे मुझ मिल जाते हैं। "

“कौन देता है खरचे पानी के पैसे ,जरा मैं भी तो सुनूं दीनानाथ ?” हरिमोहन ने पूछा तो दीनानाथ जी ठन्डे स्वर में बोले “मुझे खर्चे पानी के पैसे देता है मेरा तीसरा बेटा। “

“तीसरा बेटा ?” तीसरे बेटे का जिक्र सुनते ही हरिमोहन जी पर जैसे बम गिर पड़ा। हरिमोहन बरसों से दीनानाथ को जानते थे। उन्हें.अब तक यही ज्ञात था कि दीना नाथ जी के दो ही बेटे हैं नंदू और चंदू। तीसरा बेटा से कहां से आ गया ? यही सवाल उन्होंने जब दीनानाथ से पूछने की कोशिश की तो उसी समय दीनानाथ जी की पत्नी बिमला ने कमरे में प्रवेश किया।

बिमला के हाथ में चाय का कप था “चाय लीजिये हरी भइया।”बिमला बोली तो हरी मोहन चाय पीने लगे। जितनी देर हरिमोहन वहां बैठे ,उन्हें दीनानाथ से अपने प्रश्न को पूछने का अवसर ही नहीं मिला.बिमला वहीँ बैठी रही। हरिमोहन की हिम्मत नहीं हो रही थी कि वह तीसरे बेटे के बारे में बिमला की उपस्थिति में दीनानाथ से कुछ पूछताछ करे। इसीलिए चाय पीकर हरिमोहन जी वहां से चल दिए।घर से बाहर निकलते ही उन्हें चंदू और नंदू मिल गए।

हरिमोहन जी ने उन दोनों को देखते ही खूब खरी खोटी सुनाई। वह बोले " नंदू चंदू मुझे बड़ा दुःख है कि तुम दोनों ने अपने पिता को कितनी असहाय  अवस्था में  अकेला छोड़ दिया , तुम्हे शर्म आनी चाहिए। "

नंदू हरिमोहन की बात सुनकर बोला ” अरे हम तो चाहते हैं कि हम उनके साथ रहें। “

“अगर वो मकान हमारे नाम कर दें तो हम उनके साथ रहने को तैयार हैं। “चंदू ने भी अपनी सफाई दी तो हरिमोहन जी थोड़ा चकित हुए ,कि दोनों लड़के तो दीनानाथ के साथ रहना चाहते हैं , मगर मामला अटकता है मकान पर। हरिमोहन ने फिर कुछ सोचकर कर उन दोनों से पूछा ” तुमने कभी बताया ही नहीं कि तुम्हारा कोई तीसरा भाई भी है” ‘हरिमोहन ने जैसे ही प्रश्न चंदू नंदू से किया ,दोनों सकते में आ गए।

‘तीसरा भाई. ? आप कैसी बातें कर रहे हमें तो कुछ समझ में नहीं आ रहा , हरिमोहन जी, हमारा तो कोई तीसरा भाई नहीं है ।” नंदू ने असमंजस में पड़कर कहा तो हरिमोहन जी भी सर खुजलाने लगे । चंदू जो अब तो हरिमोहन जी की बात सुनकर अवाक् खड़ा था , बोल उठा “हम तो सिर्फ दो ही भाई हैं बचपन से अपने तीसरे भाई का जिक्र ही नहीं सुना अचानक तीसरा भाई कहां से आ गया ?”

” मैं भी परेशान हूं कि तीसरा भाई कहां से आ गया? हरिमोहन जी ने भी असमंजस भरे स्वर में कहा तो नंदू बोला ”हरिमोहन जी, आपको कोई गलतफहमी हुई है,हमारा तो सचमुच कोई तीसरा भाई नहीं हैं। “हरिमोहन बोले ”अरे भई ,मुझे कोई गलत फहमी नहीं हुई,बल्कि सच तो ये है कि दीना नाथ ने मुझे खुद कहा कि उनका तीसरा बेटा है ,जो हर महीने खर्चे पानी के पैसे भी देता है। ”

”क्या ?” चंदू,नंदू के मुख से निकला ।

” मुझे समझ में नहीं आ रहा कि पिताजी ने ये क्यों कहा कि उनका तीसरा बेटा भी है। ” चंदू हरिमोहन जी की बात सुनकर बोला नंदू किंचित रोष में बोला ” अगर पिताजी की बात सच है तो हरि मोहन जी आप देखना हम दोनों भाई जी पिताजी के तीसरे मतलबी बेटे की क्या गत बनाते हैं।.”

“मतलबी बेटा ,क्या मतलब?” हरि मोहन जीचौंक कर बोले।

” मतलब ये हरिमोहन जी कि कोई आदमी हमारे पिताजी को उल्लू बना रहा है और खर्चा पानी देकर उनसे जबरदस्ती उनका बेटा बनने की कोशिश कर रहा है।” नंदू अपने हाथ मसलते हुए गुस्से से बोला तो हरी मोहन जी ने हैरानी से पूछा ” लेकिन कोई आदमी जबरदस्ती अपनी जेब से पैसे देकर किसी को अपना बाप बनाएगा तो क्यों?

“अरे हरिमोहन जी इसे समझना कोई मुश्किल है क्या ?, अरे ये जो हमारा तथाकथित तीसरा भाई है, ये महीने भर का खर्चा देने का नाटक करके ,पिताजी का मकान अपने नाम करवाना चाहता है, हम उस आदमी को ढूंढ निकालेंगे और उसकी ऐसी तैसी कर देंगें ,नंदू ने हरिमोहन को समझाते हुए कहा तो हरिमोहन जी से पहले तो कुछ कहते ना बन पड़ा,फिर उन्होंने जिज्ञासावश लिया ” ये तुम क्या कह रहे हो अपने तीसरे भाई को तुम ढून्ढ निकलोगे ,लेकिन कैसे ढूंढोगे ,कहां ढूँढोगे ?

” इस तीसरे भाई का पता तो हमें मां से मिल सकता है। हम अभी उससे जाकर पूछते हैं कहां है हमारा तीसरा भाई?’ नंदू चंदू दोनों ये कहते हुए मां के पास जा पहुंचे। जब उन्होंने माँ से तीसरे भाई के बारे में पूछा तो माँ अचरज से बोली ” कौन सा तीसरा भाई ?”

“हमें बेवकूफ मत बनाओ ,बताओ वो आदमी कौन है जो मकान अपने नाम करने के लिए पिता जी का नकली बेटा बना हुआ है। ” नंदू रोष से बोला तो माँ ने नंदू को झिड़कते हुए कहा ‘ ऐसी बातें मत करो नंदू, तुम्हें शर्म आनी चाहिए।”

‘ शर्म तो पिताजी को आनी चाहिए। जिन्होंने अपने सगे बेटों के होते हुए किसी पराये को अपना बेटा बना लिया। “चंदू बीच में पड़ कर नंदू की बात को बढ़ाते हुए बोला तो माँ क्रोधित होते हुए बोली ” क्या बकवास कर रहे हो ,क्यों अपने पिता पर इतना झूठा इल्जाम लगा रहे हो। “

‘नहीं माँ ये झूठ नहीं है ,ये बिलकुल सच है। :”नंदू व्यग्रता दिखाते हुए बोला तो माँ ने फिर गुस्से में कहा :मैं नहीं विश्वास करती तुम्हारी बात का ,जरूर तुम्हें किसी ने बहकाया है। “

“नहीं ,माँ ,हमें.किसी ने नहीं बहकाया ,बल्कि हम जो कह रहे हैं,सच कह रहें हैं, क्यों नंदू ,तू क्यों चुप है । “चंदू नंदू की और मुड़ कर बोला तो नंदू ने माँ को साफ़ साफ़ बताया कि हरिमोहन जी को तीसरे बेटे वाली बात खुद पिताजी ने बताई है, और हरिमोहन जी ने उन्हें बताई है । हरिमोहन जी का नाम सुनते ही माँ सर पर हाथ रखके धड़ाम से धरती पर बैठ गयी। नंदू ने माँ को इस हालत में देखा तो घबरा कर पूछा ” क्या हुआ माँ, तुम ठीक तो हो ? ” माँ को इस तरह धरती पर बैठे देख चंदू ने माँ को झिंझोड़ कर पूछा ” क्या हुआ माँ ?”

  चंदू के झिंझोड़ने  से पता नहीं माँ को क्या हुआ वह  दहाड़ मार कर रोने लगी। ,रोते रोते वह कह रही थी " हाय ! रे चंदू,नंदू के बापू ये  तुमने ये क्या किया , तुमने मेरे अलावा दूसरी भी कर रखी है जिससे तुम्हारा एक बेटा भी  है,जिसे तुम अपना तीसरा बेटा  कहते हो।  हाय ! रे ये दिन देखने से पहले भगवान ने  मुझे उठा क्यों ना लिया  ?"माँ के मुख से निकलती नयी इस नई कथा से  चंदू ,नंदू भी सकते में आ आगये।  नंदू,चंदू ने कभी सोचा भी नहीं था कि उनके पिताजी ने कहीं और भी रिश्ता जोड़ रखा था  ,जिससे तीसरे बेटे का जन्म हुआ।  नंदू चंदू को तो अब तक यही लग रहा था  कि कोई धूर्त पिता जी को उल्लू बना रहा है  , मकान हड़पने के लिए वह पिता जी को खर्चे पानी के लिए पैसे दे रहा है ।  लेकिन माँ की चिंता ने उन्हें भी चिंता में डाल दिया। नंदू ने माँ से पूछा " माँ ,अगर तुम्हारा शक सही हुआ तो तुम क्या करोगी ?"

“मैं क्या करुँगी ,ये तो मुझे भी नहीं पता,लेकिन एक बात पक्की है कि मैं चुप नहीं बैठने वाली ,तुम दोनों चलो मेरे साथ अपने पिताजी के पास। “ऐसा कहते हुए माँ ने चंदू ,नंदू का हाथ पकड़ा और दीनानाथ जी के पास जा पहुंची। वहां पहुंचते ही माँ ने पूछा “अजी कहां छिपा रखा है मेरी सौतन को ?”

   दीनानाथ बाबू ने पत्नी का आरोप सुना तो उनके सर पर जैसे बम फूटा। वह बोले" भाग्यवान ये तुम क्या कह 'रही हो ?" ''ये बताओ,ये आपका तीसरा बेटा  कौन है ?, कहां रहता  है?,क्या करता है ?"  पत्नी बिफरते हुए बोली तो दीनानाथ जी ने सबको एक तरफ बिठाया और पूछा कि ये सब माजरा क्या है?  नंदू चंदू ने तब सारी बात बताई, कि कैसे हरिमोहन ने उन्हें पिताजी का छुपा सच बता दिया है। यह सुनकर  दीनानाथ जो को थोड़ा चैन आया। वह  बोले " हाँ बिमला ये सच है कि मैंने हरिमोहन से कहा  था कि मेरा तीसरा बेटा  है जो मुझे खर्चा पानी देता है ,लेकिन मेरा वो तीसरा बेटा वो नहीं जो तुम समझ रहे हो। "

  पिताजी जी बात सुनकर नंदू बोल पड़ा "हम क्या समझते हैं इस बात को छोड़िये ,ये बताइये कि आपका वो  तीसरा बेटा है कहां ?" नंदू की बात का उत्तर देते हुए दीनानाथ बोले " मेरा तीसरा बेटा मेरी जेब में  है ,ये देखो। " ऐसा कह कर उन्होंने अपनी जेब से एक पास बुक निकाली और सबके सामने रखी तो नंदू चंदू के अलावा पत्नी बिमला भी चौंकी " ये क्या है? "बिमला हैरानी से बोली तो दीनानाथ जी ने सारी  बात समझाते  हुए कहा " ये डाक घर की बचत स्कीम की पास बुक है ,बिमला तुम तो जानती ही हो कि मैं बरसों डाक घर की बचत स्कीम में कुछ कुछ पैसे जमा करता रहा हूँ ,अब इतने  साल बाद वो जमा पूँजी इतनी ज्यादा हो गयी है कि में अब इस रकम को मासिक ब्याज देने वाली स्कीम मे तबदील  कर लिया है जिससे मुझे खर्चे पानी के लिए मासिक पैसे मिलते  हैं ,और ये सब तुम्हें भी पता है बिमला ,फिर भी तुमने मुझ पर इतना बड़ा इल्जाम लगा दिया ?" 

   बिमला ने दीनानाथ जी बात सुनी तो उसकी रुलाई फूट पड़ी " हाय हाय  ये मैंने क्या कर डाला ,मेरी मति मारी गयी जो बच्चों के बेवकूफी भरी बातों पर यकीन कर लिया ,मुझे माफ़ कर दीजिये। "ये कहते हुए बिमला दीनानाथ जी के चरणों मैं गिर पड़ी। कहना न होगा कि नंदू और चंदू भी अपने पिता जी चरणों में गिर पड़े।

परिचय
नाम; प्रभुदयाल खट्टर
जन्म ;-23/11/1951
जन्म स्थान;-दिल्ली
शिक्षा ;- स्नातकोत्तर -हिंदी साहित्य
लेखन;गत 50 वर्षों से देश की सभी साहित्यिक पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो ,दूरदर्शन में कविता,कहानी तथा नाटक लेखन के अंतर्गत उल्लेखनीय योगदान
सम्प्रति ;दूरदर्शन एवं राष्ट्रीय अनुसन्धान एवं प्रशिक्षण परिषद्, नई दिल्ली में लगभग ३५ वर्ष सेवा कार्य के बाद सेवा निवृत।
विशेष;शैक्षिक प्रसारण के क्षेत्र में अनेक राष्ट्रिय पुरस्कारों से सम्मानित।
पुस्तक प्रकाशन ;प्रकाशन विभाग द्वारा, कहानी संग्रह ‘चौदह घंटे’, नेशनल बुक ट्रस्ट द्वारा लघु कथा संग्रह ‘एक और पहलू ‘ अनुराधा प्रकाशन द्वारा लघु कथा संग्रह – ‘अल्प -विराम’ प्रकाशित।
निवास;नई दिल्ली
दूर भाष सम्पर्क;011 -9868271185

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