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कौन बने शिव ?

बस्ती में अजीब सन्नाटा मरघट में कोलाहल

ऐसा क्यों हो रहा जानकर भी हम सब अनजाने
सद्ग्रन्थों को धरा ताक पर कर्म करें मनमाने
यही दुराग्रह विष समाज में जगह-जगह पर फैला
दिन-प्रतिदिन होता जाता है मानवअधिक विषैला

झुलसातीं नित विष-ज्वालाएँ मानवता के तरु को
कौन बने शिव? जो पी डाले सामाजिक हालाहल

सभी व्यस्त हैं मरने तक की फ़ुरसत नहीं किसीको
सिद्धि साधना विना चाहते कहते भ्राँति इसी को
वर्षों का सामान जुटाए पल का नहीं ठिकाना
भरे हुए थोथी दलील का अपने पास ख़ज़ाना

इसी तरहकी गतिविधियों ने क्या से क्या करडाला
लाख ढूँढने पर भी इनका मिला नहीं कोई हल

हर कोई है डरा-डरा-सा पर निर्भीक बताता
देख पड़ोसी की हालत को मन ही मन घबराता
भलीभाँति वह जान रहा है कल उसकी ही बारी
किन्तु नहीं की हालातों से लड़ने की तैयारी

इसीलिए कुहराम मचा है इस पावन धरती पर
एक-दूसरे का मुँह तकते लाए कौन अमर-फल

          ©प्रतापनारायण मिश्र
            +91-94502 82472
                  बाराबंकी (उ०प्र०)

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