Latest Updates

मेरे ज़रूरी काम

जिस रास्ते जाना नहीं

हर राही से उस रास्ते के बारे में पूछता जाता हूँ।

मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ।

जिस घर का स्थापत्य पसंद नहीं

उस घर के दरवाज़े की घंटी बजाता हूँ।

मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ।

कभी जो मैं करता हूं वह बेहतरीन है

वही कोई और करे – मूर्ख है – कह देता हूँ।

मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ।

मुझे गर्व है अपने पर और अपने ही साथियों पर

कोई और हो उसे तो नीचा ही दिखाता हूँ।

मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ।

मेरे कदमों के निशां पे है जो चलता

उसे अपने हाथ पकड कर चलाता हूँ।

मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ।

और

मेरे कदमों के निशां पे जो ना चलता

उसकी मंज़िलों कभी खामोश, कभी चिल्लाता हूँ।

मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ।

मैं कौन हूँ?

मैं मैं ही हूँ।

लेकिन मैं-मैं न करो ऐसा दुनिया को बताता हूँ।

मैं अपनी अहमियत ऐसे ही बढ़ाता हूँ।

डॉ. चंद्रेश कुमार छतलानी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *