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स्त्री

स्त्री जब खुश होती है

बर्तन माजते माजते

कपड़े धोते-धोते

 रोटी बेलते बेलते

सब्जी में छोका लगाते लगाते

 भी गुनगुनाती है

कभी अकेले खामोश चारदीवारी में

भी गुनगुनाती है

सुबह से शाम तक

 चक्की की तरफ पिसते पिसते

 भी खुश होकर गुनगुनाती है

वह बच्चों की भागमभाग

बच्चों की फरमाइश

 और रिश्ते नाते निभाते निभाते

 भी खुश होकर

खुद को खुश रखने के लिए

 गुनगुना लेती है

अपने लिए

वह कुछ पल गुनगुनाती है

जब स्त्री खुश होती है

 कमल राठौर साहिल

शिवपुर मध्य प्रदेश

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