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“स्वर्ग का द्वार”

स्कूल कई महीनों से बंद थे। बच्चे घर में रह कर परेशान हो गए थे। यही कारण था कि घर में दिन भर कोहराम मचा रहता। दिन भर चीखना चिल्लाना, मारना पीटना, रोना धोना बस यही हो रहा था। गांव से दादाजी आए तो उन्हें यह सब देखकर बहुत दुख हुआ। उन्होंने बच्चों को बुलाकर पास बिठाया और झगड़े का कारण पूछा। सब कद्दू को ही दोषी ठहरा रहे थे। सबका कहना था कि वह बहुत स्वार्थी और दादागिरी दिखाने वाला था।कद्दू का शरीर भी भारी भरकम था। सारे बच्चे एक तरफ और वह अकेला एक तरफ। हमेशा सबको रुला कर भाग जाता। दादाजी ने ध्यान से बच्चों की बात सुनी  और उन्हें महाभारत का एक किस्सा सुनाया।

युद्ध समाप्ति के बाद युधिष्ठिर ने अनेकों वर्षों तक राज्य किया। जब अभिमन्यु का पुत्र राज्य करने योग्य हो गया तो सभी पांडवों ने द्रोपदी सहित स्वर्ग जाने की अपनी यात्रा शुरू कर दी। द्रोपदी समेत युधिष्ठिर के चारों भाई शशरीर स्वर्ग नहीं पहुंच पाए। अकेले युधिष्ठिर ही मरे बिना ही स्वर्ग पंहुचे। स्वर्ग में उन्होंने अपने सभी भाइयों के साथ ही साथ दुर्योधन को भी देखा। दुर्योधन का व्यवहार एकदम ही बदल गया था। वह अपने सभी भाइयो और मित्रों के साथ बहुत खुश था। भीम और अर्जुन ने युधिष्ठिर  से पूछा ,” बड़े भाई, दुर्योधन ने तो जीवन भर कोई अच्छा काम किया ही नहीं फिर इसको स्वर्ग कैसे मिला ?” इतनी कहानी सुनाकर दादाजी ने बच्चों से पूछा,” जानते हो ऐसा क्यों हुआ ?” बच्चों ने अपनी समझ के अनुसार जवाब दिए। दुर्योधन उन्हें कद्दू की तरह ही लगता था। इसलिए उसके स्वर्ग में जाने का रहस्य उन्हे भी समझ नहीं आया। दादाजी ने कहानी को आगे बढ़ाते हुए कहा,” युधिष्ठिर ने अपने भाइयों को याद दिलाया कि जीवन भर दुर्योधन राजगद्दी पाने के लिए सारे बुरे काम करता रहा। भी उस राजगद्दी को पाने के लिए अपने जीवन की भी आहुति दे दी। अपने लक्ष्य की प्राप्ति के लिए वह जीवन भर प्रयास करता रहा। उसकी इसी एकाग्रता ने उसे स्वर्ग में भेजा है।” बच्चे सोच में पड़ गए। दादाजी उनके मन की बात समझ गए। “बच्चों कद्दू में भी कोई न कोई खूबी ज़रूर होगी इसलिए उसको भगाने के लिए लड़ाई झगड़ा ठीक नहीं है। तुम लोग उसके साथ अच्छा व्यवहार करोगे तो वह भी बदल जाएगा।”

बच्चे आज़ बहुत खुश थे। दादाजी ने उनके विचारों को बदल दिया था। उन सबने ठान लिया कि कद्दू को अपना दोस्त बनाकर रहेंगे।

अर्चना त्यागी

मौलिक, स्वरचित एवम् अप्रकाशित।

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