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शिक्षा वही जो राष्ट्र का गौरव बढ़ाए

शिक्षा ही तो इंसान को संस्कार दे चरित्रवान बना जीवन के पथ पर आगे बढ़ने को प्रेरित करती है।

शिक्षा राष्ट्र निर्माण का आधार है,तो शिक्षक ही कर्णधार।शिक्षक ऐसा चाहिये,जैसे हो माटी कुम्हार,ठोक ठोक कर घट गढ़े, करा दे बेड़ा पार।

बच्चे की पहली गुरु माँ पिता दिखाये स्कूल की  राह!शिक्षक उसे इन्सान बनाये,कमियों को बताये,

खूबियों का एहसास कराये,हर हाल में बस मुस्कराना सिखाये जो  राह दिखाई वो तुम दूसरों को दिखा पाओ,इस के काबिल बना दे। शिक्षक की महिमा का वर्णन क्या करें,जब कोई जीवन में ऊँचाइयों को कोई छू ले तब उसे हर पल यही एहसास हो कि ये मेरे देवतुल्य शिक्षक के कारण ही हो पाया बस यही समझ ही इस अनूठे सम्बन्ध की पराकाष्ठा है।

आज नई शिक्षा नीति जो अब लागू होनी है,वो रोजगारोन्मुख है,की जरूरत इसलिये पड़ी कि पहले की नीति से बेरोजगार ही बढ़ रहे थे, नौकरियां तो उस अनुपात में बहुत ही कम है।विडम्बना देखिये बी टेक, एम टेक,एम ए,पी एच डी फोर्थ क्लास की नौकरी  के लिये आवेदन कर देते  हैं।अभी हरियाणा में भी 

हाल ही में चयनित हुए उच्च शिक्षा प्राप्त ऐसे व्यक्तियों को कार्य कुछ लिहाज़ रख देने को कहा।

आखिर ये सब क्या है!

शिक्षा इन्सान को संवारती है,सजाती है,दूसरों के सामने अपने आप को प्रस्तुत करने के लायक बनाती है।शिक्षित व्यक्ति का उद्देश्य शिक्षा का  प्रचार प्रसार होना चाहिए, अपने स्वार्थ व व्यक्तिगत हितों को छोड़कर राष्ट्र विकास में सहयोग देना प्राथमिकता होनी चाहिये।

राष्ट्र की उन्नति में वहां की सामाजिक स्थिति और लोगों की मानसिकता बहुत भूमिका निभाती हैं अतः जनमानस के मस्तिष्क में देशप्रेम और सौहार्द की भावना का विकास करना  प्राथमिकता हो जाती है,

यह कार्य शिक्षक से अधिक और कौन करेगा।

शिक्षा ही राष्ट्र निर्माण का आधार है,इस से लाभान्वित हो कर जीवन के  हर क्षेत्र में आगे बढ़ते हुए वे अपने राष्ट्र के विकास में सम्पूर्ण योगदान देंगे और यह महती कार्य करने वाले शिक्षक ही राष्ट्र के वास्तविक कर्णधार हैं।

देश की नैया के असली खेवनहार वही है, जैसा वो सिखायेंगे विद्यार्थी वही सीखेंगे,वैसा ही तो आचरण करेंगे।आज अच्छे,योग्य शिष्यों-चन्द्रगुप्त, विवेकानंद, शिवा जी के कारण ही चाणक्य,रामकृष्ण परमहंस,समर्थ राम दास का नाम आदर व सत्कार से लिया जाता है।ऐसे विश्व में अनेकों उदाहरण हैं।एक डॉक्टर की भूल कब्र में,एक वकील की भूल फ़ाइल में,एक इंजीनियर की भूल मिट्टी में दब जाती है मगर एक शिक्षक की भूल पूरे राष्ट्र को प्रभावित करती है।

सच ही तो है-” शिक्षा ऐसी रोशनी,मन अंधकार मिट जाए,मध्य रात्रि बिन दीप के,रास्ता नज़र आ जाए।”

 राधाकृष्ण जी ने एक बार कहा था कि इन्सान ने पक्षियों की तरह उड़ना सीख लिया,मछलियों की

तरह तैरना सीख लिया   पर इन्सान बनना नहीं सीखा।उसे इन्सान शिक्षक बनाता है,

बिना शिक्षक अच्छे जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती।हीरे की तरह तराश कर वही तो

हर मुश्किल से जूझना सिखाता है,वही प्रेरणा का सागर है,अच्छा नागरिक बनाता है,हमारी हम से पहचान कराता है।

-राजकुमार अरोड़ा’गाइड’

कवि,लेखक व स्वतंत्र पत्रकार सेक्टर 2 बहादुरगढ़(हरि०)

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