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सुनाते रहे

खामियां, खामियां तुम गिनाते रहे।

बेवजह ही हमें, तुम सुनाते रहे।।

हो हमारी ख़ता, या तुम्हारी ख़ता।

हर दफा ही तुम्हें, हम मनाते रहे।।

माना आवाज में मेरी जादू नहीं।

गीत तेरे लिए फिर भी गाते रहे।।

अंधा कानून है, सुनते हम आ रहे।

न्याय अंधों से हम क्यों कराते रहे।

अपने महबूब को चाँद कहने लगे।

इस तरह चाँद को हम जलाते रहे।

प्यार तुमसे किया दुनिया को छोड़कर।

ये भी एहसान हम पर जताते रहे।।

हो किसी की ख़ता पर उन्हें क्या पता।

कटघरे में हमी को बुलाते रहे।।

वो समझते रहे है मुझे “बेशरम”।

काम अपने विजय से बनाते रहे।।

विजय “बेशर्म”

कल्याणपुर मप्र

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