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आज मैं प्रश्नाकुल हूँ ………

आज प्रश्नाकुल हूँ मैं क्योंकि

आँखों का आदिम स्वप्न रोता,

प्यासे मन में विषाद दिखता

जीवंत सत्य बस गरल बोता !

आज प्रश्नाकुल हूँ मैं क्योंकि

वृथा दंभ की परिधि फैली

अभीष्ट जो था , अपवाद क्यों है ?

पक्षपात, वेदना, निशा दृष्टिगत

शिराओं में रक्त का संचार ज्यों है !

आज प्रश्नाकुल हूँ मैं क्योंकि

सृष्टि की मूल संकल्पना है उत्तम

निज संवेदना लगती कंटक क्यों है ?

दिशाएँ मुक्त,बृहद आकाश फिर भी

प्राणों के भीतर भटकन ज्यों है !

आज प्रश्नाकुल हूँ मैं क्योंकि

षड्यंत्रों की अग्नि परीक्षा ही

समाज में दिखती प्रबल क्यों है ?

नियति दावानल में अक्षुण्ण नहीं

विलुप्त ही शांति सबल ज्यों है ! अंजु मल्होत्रा

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