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एक दिन सब यहीं छूट जाएगा

यह दुनिया तो है एक सराय

यहां कभी कोई आए तो कभी कोई जाए

फिर भी लगी है सबको पैसों की हाय हाय

यह पैसा भी एक दिन रूठ जाएगा

एक दिन सब यहीं छूट जाएगा।

चार दिन की चांदनी, फिर अंधेरी रात

सुख दुख तो है एक आनी जानी बात

हैवानियत के मोहरों की फैली यहां बिसात

इंसानियत को भी कोई लूट जाएगा

एक दिन सब यहीं छूट जाएगा।

नहीं रह गया इस दुनिया में अब प्यार

दुनिया हो गई है बहुत ही होशियार

मोहब्बत ही बन गया है एक व्यापार

पति पत्नी का रिश्ता भी एक दिन टूट जाएगा

एक दिन सब यहीं छूट जाएगा।

ईमानदारी की बात तो सब करते हैं

लेकिन सच बोलने से हम सब डरते हैं

खून के घुट हम सब भरते हैं

हर तरफ झूट ही झूठ रह जाएगा

एक दिन सब यहीं छूट जाएगा।

कौन अपना है कौन है बेगाना

एक दिन तो सबको है चले जाना

फिर व्यर्थ क्यों हाय तौबा मचाना

तेरा अभिमान का लावा भी फूट जाएगा

एक दिन सब यहीं छूट जाएगा।

संजय अमन पोपली।

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