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कहानी : सड़क दुर्घटना

अंधेरी रात और लगभग 9 बजे का समय, मै और मेरा बॉस (राज) उनकी कार से घर लौट रहे थे।  हम दोनों एक ही गाव के निवासी थे। वह मुझसे किराया तो नहीं लेता था परन्तु किराए की एवज में मुझे उसकी हां मे हां मिलनी पड़ती थी। उसकी झूठी तारीफ भी करनी पड़ती थी , चाहे उसकी बात सही हो या गलत। रोजाना कम से कम एक बार तो  वो मुझे अहसास करा ही देता था कि वो मेरे उपर बहुत बड़ा अहसान कर रहा है और वास्तव में कर भी रहा था। 8000 रुपए प्रति माह तनख्वाह वो भी घर से 25 किलोमीटर दूर नौकरी करके परिवार को पालना संभव न था अगर साहिब मेरे ऊपर वो अहसान ना करते तो। कई बार ऐसा हुआ कि हमनें फैक्ट्री से घर लौटते समय रास्ते में सड़क दुर्घटना में घायल लोगो को सहायता के लिए तड़पते हुए देखा लेकिन बॉस ने कभी भी कार रोक कर उनकी सहायता नहीं की। मैंने हर बार उनसे सहायता करने के लिए  प्रार्थना की लेकिन उन्होंने कभी भी किसी निसहाय की सहायता नही की। किसी के प्रति कोई सहानुभूति नहीं  दिखाई। राज को अपनी संपत्ति और पोस्ट का बहुत घमंड था। उसको लगता था कि उसको कभी किसी की सहायता की आवश्यकता नहीं पड़ेगी। उस रात भी ऐसा ही हुआ। गांव से लगभग 10 कि मी पहले मैंने कार की हैडलाइट की रोशनी में देखा कि दो मोटरसाईकल का एक्सिडेंट हुआ था, तीन  से एक लड़का जो खून से लथपथ था, हाथ के इशारे से सहायता मांग रहा था। मैंने राज से कहा, “साहिब! कार रोको, किसी का बहुत गंभीर एक्सिडेंट हुआ है, और एक लड़का सहायता मांग रहा है।” ” कोई जरूरत नहीं है किसी की सहायता करने की। क्यों बिना वजह लफड़े में पड़े हम, एक तो पूरी रात बर्बाद हो जाएगी और ऊपर से पुलिस और कोर्ट के चक्कर।” राज ने मुझे झिड़कते हुए कहा ” नहीं साहिब अब कोई पुलिस या कोर्ट का लफड़ा नहीं होगा। बस इनको अस्पताल पहुंचा कर हम अपने घर चले जाएंगे। अगर हम सहायता नहीं करेंगे तो ये मर जाएंगे।” मैंने प्रार्थना की। लेकिन राज ने दो टूक जवाब दिया, ” मै कार नहीं रोकूंगा, ज्यादा ही दया आ रही हैं तो तुम कार से उतर जाओ और उनकी सहायता करो।” कार लगभग 100 मीटर आगे निकल चुकी थी, चारो तरह अंधेरा ही अंधेरा था, मुझे डर भी लग रहा था लेकिन मेरे अंदर बैठे मेरे जमीर ने मुझे कार से उतर दिया। मै उन घायल लडको के पास पहुंचा तो वहां अंकित को देखकर में स्तब्ध रह गया। अंकित राज का ही बेटा था जो बुरी तरह घायल था, उसके सिर और चहरे पर चोट लगी थी। बाकी दो लड़के बेहोश पड़े हुए थे। मैंने तुरंत राज को कॉल किया, लेकिन उसने रिसीव नहीं किया शायद उसको लगा कि मै उसको उन घायल लडको की सहायता के लिए बुला रहा हूं।कई बार कॉल किया लेकिन कोई फायदा नहीं हुआ। मैंने वहां से गुजर रही कई कारो को रोकने की कोशिश की परंतु …..। काफ़ी देर बाद महेंद्र जो राज का दुश्मन था, ने कार रोकी और उन् तीनों लडको को अस्पताल ले गए। डॉक्टर ने उनका इलाज शुरू किया। घर पहुंचते ही राज को पता चला कि अंकित का एक्सिडेंट हो गया है, वो बहुत ज्यादा घबरा गया और कार वापिस मोड़कर दुर्घटना स्थल पर पहुंचा। अंकित की बाइक को देखकर तथा अंकित को वहां ना पाकर उसके होश उड़ गए। राज ने मुझे फोन किया, वो फूट फूट कर रो रहा था। मैंने उसको बताया की अंकित अब पास के ही अस्पताल में है। वो बहुत जल्दी अस्पताल पहुंच गया। डॉक्टर ने उसे बताया कि अगर5 मिनट और लेट हो जाते तो हम अंकित को बचा नहीं पाते। शुक्र है महेंद्र जी का  वे घायलों को अस्पताल ले आए। राज का सिर शर्म से झुक गया था, वो किसी से भी नजर नहीं मिला पा रहा था। रोता हुआ महेंद्र के पैरों में लेट गया और गिड़गिड़ाते हुए उसका धन्यवाद करने लगा। राज ने मुझे सीने से लगा लिया और मुझसे क्षमा याचना करने लगा तथा वादा करने लगा कि वो ऐसी लगती भविष्य में कभी नहीं करेगा।   Dr KP Singh Assistant Professor

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