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खुलेआम जनमत की खिल्ली उड़ रही है

संसद के अंदर  जब  शोर-शराबा होता है,

अनर्गल ही  घात-प्रतिघात होने लगता है।

मेहनती जनता की कमाई की बर्बादी पर,

जनप्रतिनिधियों का  ध्यान नहीं जाता है।

संसद  में  एक मिनट  के  बहस  में  व्यय,

सुनते हैं उनत्तीस हजार रुपये हो जाता है।

सुविधाभोगी  जननेता ईमानदारी से सोचें,

खर्च होने वाला सब धन कहां से आता है?

किसान, विद्वान,श्रमिक, सैनिक व उद्यमी,

मिलकर राष्ट्रीय संपत्ति में योगदान देते हैं।

उसअनमोल परिश्रम की कमाई को लोग,

संसद में होहल्ला करने में ही गंवा देते हैं।

हिंदुस्तान देख रहा है जननेता की हरकत,

संसद मेंअसंसदीय कारनामा देख रहा है।

जनता के मतदान के  रूप  में मिला ताज,

सबके कर्तव्यनिष्ठा परअंगुली उठा रहा है।

संविधान शर्मिंदा है,भारतमाता चिंतित हैं;

जनता के भरोसे को  दरकते देख रही हैं।

संसद में विकास की कहीं कोई चर्चा नहीं,

खुलेआम जनमत की खिल्ली उड़ रही है।

डॉ सुधीर सिंह

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