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जनहित में जो अब जरूरी हो गया है

डॉक्टर सुधीर सिंह

जनहित में जोअब जरूरी हो गया है

आदमी का आचरण ही बदल गया है,

खून का रिश्ता भी  पराया हो गया है।

जिनको लोग कल अपना समझते थे,

वही छिपकर  आघात  करने लगा है।

घर-बाहर जालसाजों  का  जमावड़ा,

ईमानदारी  का  मजाक उड़ा  रहा है।

चरित्रवान  पर  व्यंग्य-वाण छोड़ कर,

खुलेआम उनको  घायल  कर रहा है।

अवमूल्यन हो रहा है यहां विश्वास का,

दगाबाज उसका  मूल्य  लगा  रहा है।

धोखेबाजों  के बीच  रहने  की आदत,

ईमानदार इंसान  बना नहीं पा रहा है।

भ्रष्टाचारी के घर में धन की बारिश ने,

भ्रष्टाचार को  लुभावना बना दिया है।

शीघ्र ही समाज उसपरअंकुश लगाए,

जनहित में जोअब जरूरी हो गया है।

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